लेकिन इस सेवा का दूसरा पक्ष बहुत ही भावुक और पूरी तरह से अनदेखा है, जिसने बाबा के लिए और अधिक प्यार को जन्म दिया। उन भक्तों के लिए जो विदेश में रहते हैं या जिन्हें शिरडी से बुलावा नहीं मिलता, उन्हें कम से कम ये संतुष्टी है कि यधापि वे व्यक्तिगत रूप से बाबा के सामने उपस्थित होने में सक्षम ना हों उनकी प्रार्थना (प्रिंट आउट के रूप में) बाबा तक पहुंचती है। उसका भी बाबा द्वारा जवाब दिया जाता है और उन लोगों की मानोकामनायें पूरी होती हैं। मुझे इस तथ्य की पुष्टि करते हुए ईमेल द्वारा बहुत धन्यवाद मिला है। एक छोटी सी घटना इसका संकेत देती है। कुछ महीने पहले, एक भक्त ने शिर्डी में प्रार्थना करने के लिए स्वेच्छा से, लोगों से प्रार्थना पत्र लिये थे। अमेरिका में रहने वाली एक महिला साईं भक्त ने एक बच्चे के लिए प्रार्थना करते हुए बाबा के पास अपना प्रार्थना पत्र भेजा था। कुछ महीनों के बाद उसने बताया कि बाबा ने उसकी इच्छा पूरी कर दी जबकि उसने समाधि मंदिर में खड़े होकर प्रार्थना भी नहीं की थी और सिर्फ प्रार्थना पत्र बेजा था।
पहले की पोस्ट के जवाब में मुझे निम्नलिखित मेल प्राप्त हुआ, जहाँ एक महिला भक्त जो शिरडी नही जा पाई थी लेकिन बाबा ने दर्शन दिए।
ओम् श्री साई राम
मैं 17 जनवरी 2009 को “शिरडी में पहुंची प्रार्थना” से संबंधित एक अद्भुत अनुभव बताना चाहती हूँ।
मैं इन साईं मेलों को अब लगभग हर दिन पड़ती हूँ और, भक्तों के अनुभवों को शेअर करना एक शाम की रस्म (कार्यालय समय के बाद) का हिस्सा बन गया है।
मैं एक घटना के बारे में सोच रहा थी, हमारी साईं बहनों में से एक ने 3 दिन पहले लिखा था कि उन्हें एक बाजार में खरीदारी करते समय अचानक ‘साईं मा’ देखने का मन हुआ! और उन्होंने दुकान में शिरडी साईं बाबा की तस्वीर देखी। मैं अपनी मौसी (जिनकी बेटी अभी-अभी युवा यात्रा से लौटी है) से मिलने के लिए यात्रा कर रही थी और हमारे पास शेअर करने के लिए साईं की बहुत सी कहानियाँ थीं! इसलिए मैं उसे देखने के लिए उत्साहित था और कुर्ला में बस स्टॉप पर इंतजार कर रही थी।
मुझे उस लड़की की याद आई जिसने साईं से प्रार्थना की और इसी तरह मैं भी प्रार्थना कर रही थी कि अगर साईं प्रकट होते तो कहाँ प्रकट होते। और फिर अचानक से मेरी बस आ गाई पर रुकी नही, तो मुझे बस के पीछे भागना पड़ा और मैं बस पर चढ़ गई। जब मुझे एक सीट मिली तो मैं ड्राइवर सीट के सामने की 3 सीट पर बैठ गई और अचानक देखा कि वहाँ एक शिरडी साई फोटो टंगा हुआ था जो थोड़ी फटी हुई थी मगर निश्चित रूप से हमारे महान साईं मा का चेहरा और भी सब कुछ काफी स्पष्ट था!!
मैंने अंदर ही अंदर रो रही थी और अपनी आँखें बंद कर लीं और बहुत भावुक हो गई। अपने अनुभव को आगे बताने से पहले मैं कुछ और बताना चाहती हूँ; हमारी शिर्डी यात्रा दो बार नहीं हो पाई थी (एक बार पेट्रोल हड़ताल हो गया था और उसी समय मेरी दादी के कारण, जो अस्पताल में भर्ती हो गई और अगली बार यानी इस शनिवार को मेरे पति को एक जरूरी आधिकारिक यात्रा पर चेन्नई जाना पड़ा) इसलिए मैं रो रही थी कि कम से कम अगर मैं शिरडी की यात्रा नहीं कर पाई फिर भी बाबा ने मुझे बस मे दर्शन दे दिए।
अगर हम शिरडी जाते तो हम कतार मे होते! और उसी वक़्त मैंने अपने मन में “ओम् श्री साईं बाबा नमः” का मंत्र स्पष्ट रूप से सुना, वही मंत्र जो वे कतार मे खड़े लोग सुनते रहते हैं। तब मैंने मानसिक कल्पना की कि मैं लंबे समय तक लाइन में प्रतीक्षा कर रही हूं (और संयोग से भारी ट्रैफिक जाम के कारण बस घाटकोपर मार्ग में 30 मिनट तक इंतजार कर रही थी और मुझे ऐसा नहीं लगा कि मैं अपनी मौसी के घर नही जा रही हूं।) फिर मैंने कल्पना की कि मैं मंदिर में पहुँच गई हूँ और साईं मुझे अपने पवित्र पैरों पर फूल लगाने की अनुमति दे रहे थे, एक-एक करके मैं अभी भी मन ही मन “ओम् श्री साईं बाबा नमः” मंत्र का जाप कर रही थी और सोचा कि मैं अभिषेक कर रही हूँ, उसके बाद गुलाब जल, फिर चंदन के साथ, फिर अमृत, शहद और फिर गुलाब जल के साथ और फिर अंत में बाबा के लिए बैंगनी ‘साड़ी’ डालकर, मुकुट रखकर, लाल और सुनहरे रंग का शॉल डालकर आरती कर रही हूँ। मैंने सत्य साईं बाबा की आरती की क्यूँकि मैं वही आरती जानती थी और शिरडी साईं बाबा की आरती नहीं जानती थी। मैंने सत्य साईं बाबा को भी अपनी कल्पना में देखा और इस पूरे दौरान मेरी आँखों से बस आँसू बह रहे थे। मैं सोच रही थी कि कोई भी व्यक्ति मुझे देख कर सोच रहा होगा कि यह लड़की अपने आँसू क्यों पोंछ रही है। लेकिन प्रदूषण के कारण सौभाग्य से मैंने चेहरे के चारों ओर एक चुन्नी पहने हुए थी और फिर क्या हुआ, मेरे मन में दर्शन अचानक खत्म हो गया! मैंने सोचने लगी कि बाबा ये क्या? मैं शिरडी पहुँच गई हूँ और प्रार्थना नहीं की? तो फिर मैंने अपने अंतरमन मे बाबा की आवाज को यह कहते हुए सुना कि “मैं मुलुंड में तुम्हें दर्शन दूंगा”। मैंने इसे महत्व नहीं दिया क्योंकि शाम को मेरी योजना भगवान मुरुगन (भगवान कार्तिकेय) के पास जाने की थी और मुझे आसपास साईं बाबा का कोई मंदिर याद नहीं था ।
जब मैं अपनी मौसी के यहाँ पहुंची तो मुझे अचानक उनके घर के बगल की शिरडी साईं मंदिर की याद आई (यह शिरडी की मूर्ति के समान है!) संगमरमर से बना है और बहुत ही सुखद है! साईं राम, मैंने मेरी मौसी से कहा कि जल्दी करो,और हम शाम 7 बजे बाबा मंदिर पहुँच गए! हम आरती के समय पहुँचे और मुझे ये देखकर आश्चर्य हुई की वहाँ केवल 2 सेवादल के अलावा एक भी व्यक्ति नहीं था और सिर्फ मेरी मौसी और मैं थे! मैं फिर रोई क्योंकि प्रतिमा ‘बैंगनी और हरे’ रंग की साड़ी में सजी थी और साईं के माथे पर चंदन का टीका भी था! केवल कुमकुम नहीं था जिसकी मैंने कल्पना की थी, फिर से मैं अपने बाबा के लिए प्यार के आसुओं को बहाना शुरू कर दिया कि उन्होंने न केवल मुझे आंतरिक अनुभव दिया, बल्कि शारीरिक अनुभव भी दिया। केवल मेरी मौसी को पता था कि मैं उस शाम मैंने क्या अनुभव किया था। वह बहुत रोमांचित थी। वो इतने सालों से वहाँ थी और मंदिर नहीं गई थी, इसलिए उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया क्यूँकि हमें आरती के समय दर्शन का मौका मिला। हमने अपने तहे दिल से प्रार्थना की और प्रसाद ग्रहण किया और फिर भगवान मुरुगन के मंदिर की ओर प्रस्थान किया! वहाँ भी अच्छे दर्शन हुए।
तो यह मेरी दिल को छू जाने वाला अनुभव था। अब आप समझ गए होंगे कि जब मैंने “शिरडी में पहुंची प्रार्थना” नामक टाइटल पड़ा तो मुझे कैसे महसूस हुआ होगा। एक बार फिर से मेरे साईं ने मुझे आश्वस्त किया कि भले ही हम में से कुछ लोग उनसे मिलने शिर्डी न जाएँ, लेकिन सभी की प्रार्थनाएँ मानसिक और शारीरिक रूप से शिर्डी तक पहुँचती हैं!
जय साईं राम!
श्री साई के चरण कमल को नमन, सभी के साथ शांति !!!