साईं अमृत वाणी – अध्याय 9

गुरुदेव की आवश्कता

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म (परमगुरु) है; उन सद्गुरु को प्रणाम।

जय साईं गुरुदेव, दोस्तों इस संसार में जन्म लेने के बाद हर किसी को मार्गदर्शन की आवश्कता होती है। क्योंकि अच्छा, बुरा, सही, गलत, सच, जूठ इसमे से किसी की भी चीज (शब्द) की समझ या ज्ञान के साथ हम जन्म नहीं लेते। कोइ हमें इन सभी से अर्थात ज्ञान से परिचत करवाता है, और उसे “गुरु” कहा जाता है|

इस संसार में ईश्वर का भी सबसे पहला गुरु उसकी माँ होती है, क्योंकि वही हमें सबसे पहले ज्ञान देती है। फिर हम जब बाहर जगत (संसार) के ज्ञान प्राप्ति के काबिल हो जाते है, तब हमे एक सच्चे गुरु की तलाश होती है, जो हमे जीवन का हेतु समझाए, मार्ग दिखये की हम जीवन में किस लक्ष्य को पाने के लिए काबिल बनाए वह “गुरु” ही है। जो हमे हमारे अन्दर छुपे हुनर से परिचत करते है| जब हमे हमरे सच्चे गुरु मिलते है। तब हमें सच्चा आत्मज्ञान प्राप्त होता है| हमारे जीवन का कल्याण होता है। सदगुरु साईंनाथ जिनका नाम हैं, उनके मन मैं बस्ते हैं श्री राम हैं।

हम लोग धन्य है की सतगुरु साईंनाथ के रूप मैं मार्ग दर्शक मिला हैं, साईंनाथ तो सभी गुरु और सभी संत महान के भी सदगुरु हैं। ऐसे गुरुदेव की अगर आप कुछ पल चिंतन भी करेंगे अपने मन मै तो आपकी मन की अंधकार मिटकर ज्ञान की आलो में प्रकाशित हो उठेगा। हर जीवन की तरह इस जीवन मैं भी आपको सदगुरु के रूप मैं पाकर हमारे जीवन तो सार्थक हो जाता हैं। साईं मैं हू सियाही और आप हो कलम, हम दोनो ने मिलकर ही तो इस जीवन की हर एक पन्ने को लिखा हैं रंगीन सियाहि से। है गुरुदेव आप तो हर वक्त, हर जगह साथ रहते हो सभी के साथ, उचित मार्ग दर्शन भी करते हो अपने सभी बच्चों का। हे सदगुरु साईंनाथ आप कहा हो ये हमें मालूम नहीं हैं, लेकिन आप हमेशा हम लोगो के साथ रहते हो इसका हम सभी लोग मेहसूस कर सकते हैं।

“साईं बाबा” आप हो मेरे गुरुदेव और मैं हूं आपका शिष्य, गुरुदेव और शिष्य की मिलन कथा तो बहुत युग युग से चली आ रही हैं, है साईंनाथ मेरी आपसे विनती हैं कि आपको गुरुदेव के रूप मैं इस जग के सभी बच्चों को मिले तो उनका भी सही तरह से मार्ग दर्शन होगा। इस भव सागर से भी पार उतर जायेंगे आपकी कृपा से, “गुरु दीक्षा” की प्रधान उद्देश्य ये है कि हम लोग कभी भी इस मायावी दुनिया मैं अपने लश्य से भटक न जाए| गुरु हमेंशा हम सभी को सही रास्ता दिखाते हैं, इसीलिए हमें गुरु से दीक्षा लेकर सही राह पर चलते रहना चाहिए और अपने गुरुदेव को साथ लेकर आगे बरते रहना चाहिए, तभी “गुरु दीक्षा” हो या “गुरु ज्ञान” हो सफल हो पाएगा। चाहे सुख हो या दुःख हमें गुरु का हाथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि इन दोनो परिस्थिति से केवल एक मात्र गुरु ही सही रास्ता दिखाते हैं।

हमें गुरु के साथ ऐसे रहना चाहिए जैसे एक चुम्बक लोहे को पकड़ कर रखते हैं अपने आकर्षण शक्ति से| हा ऐसी आकर्षण शक्ति तो हमारे पास नहीं हैं लेकिन हम लोग अपनी भक्ति भाव से, गुरुदेव की दी हुई अनमोल वचनो को पालन करके, श्रद्धा और सबूरी रखकर अगर हम आगे बढ़ते रहे तो गुरुदेव को हमेशा अपने पास ही पाएंगे। ये कैसा रिश्ता हैं और कैसा नाता हैं गुरुदेव, जितना भी देखूं आपको पर ये मन ही नहीं भरता। ओम साईं राम सभी को और गुरु पूर्णिमा का हार्दिक शुभकामनाएं।।

साभार: SAI Jitu Ghosh

© साईं तेरी लीलाMember of SaiYugNetwork.com

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Hetal Patil
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