हेतल पाटिल रावत: शिरडी – एक यादगार यात्रा

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A Memorable Trip To Shirdi से अनुवाद

सच्चे साईं भक्त के दिल में शिरडी जाने की हमेशा गहरी इच्छा रहती है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या हालात हैं या वर्ष का कौन सा समय हो, मुझे जब भी शिरडी बुलाया जाता है, हमेशा धन्य महसूस होता है। मैं हमेशा शिरडी जाने के लिए ऐसे इंतजार करती हूँ जैसे की एक चातक पक्षी बारिश की बौछार का इंतजार करता है। मेरी राय में, शिरडी जाकर हमें चार धामों की तीर्थ यात्रा पर जाने का फल मिलता है। हालाँकि साईं बाबा को अब शिरडी में शारीरिक रूप में नहीं देखा जा सकता है, फिर भी उनकी सांस शिरडी की हवा में मौजूद है। शिरडी में साईं बाबा के दर्शन की लालसा का कोई अंत नहीं है। लेकिन ये केवल वही जाते हैं, जिन्हें बाबा का बुलावा आता है। पिछले साल की तरह, इस साल भी मुझे मेरे माता-पिता,भाई और चचेरे भाई के साथ शिरडी में दिवाली मनाने का सुनहरा मौका मिला। अब मैं अपने शिरडी ट्रिप के बारे में पूरी जानकारी दूँगी । यह निश्चित है कि बाबा ने हमारी यात्रा के हर क्षण की योजना बनाई थी और धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि सभी लिंक जुड़े हुए थे। डेढ़ महीने के बाद यात्रा के बारे में लिखने के लिए मैं क्यों बैठी, मैं इसे समझने या समझाने में असमर्थ हूं। यह मेरे लिए बाबा का सीधा आदेश था।

शिरडी जाने से पहले और बाद मे कई परस्तिथियाँ उत्पन्न हुई जिन्हें अगर बाहरी रूप से देखा जाए तो वे सामान्य घटना प्रतीत होते हैं, लेकिन अगर गहराई से सोचा जाए तो वे वास्तविक मे चमत्कार हैं। शिरडी के लिए रवाना होने से पहले भी ऐसे कई घटनाएं हुई। टिकट बुक करने से लेकर शिरडी पहुँचने तक बाबा ने हमारा बहुत ध्यान रखा। हम दिवाली के दिन यानी 28 अक्टूबर, 2008 को सुबह 10:00 बजे शिरडी पहुंचे। खुद को तरोताजा करने के बाद हम सुबह 11:30 बजे समाधि मंदिर के लिए रवाना हुए। चूंकि यह दोपहर आरती का समय था एक लंबी कतार थी, हमने पहले दोपहर का भोजन करने का फैसला किया और फिर अवकाश के समय दर्शन किए। मुझे याद दिलाया गया था कि हेमाडपंत ने उस समय साईं सतचरित्र में कहा था कि “भगवान खाली पेट नहीं प्राप्त होते है”।

शिरडी संस्थान ने दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा में भाग लेने के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था की है। लक्ष्मी पूजा में भाग लेने के इच्छुक भक्तों को अपना नाम, पता और संपर्क नंबर लिख कर मुख दर्शन के साथ वाले हॉल में एक मुहरबंद लिफाफा जमा करना होता है। तो मेरे पिता लिफाफा जमा करने गए और एक लंबी कतार थी। हम चार हम समाधि मंदिर के मुख्य निकास द्वार के ठीक सामने इंतजार कर रहे थे। मेरा भाई को प्यास लागि थी इसलिए उसने मुझे पानी के नल के पास चलने को कहा। जब वह पानी पीने जा रहा था, एक सुरक्षाकर्मी आया और उसने हमसे कहा कि वह लेंडी बाग के पास जाए क्योंकि यहाँ पानी ठंडा नहीं था और हमे पसंद नहीं आएगा । हम लेंडी बाग की ओर गए और पानी पिया। हमने उदी पैकेट भी लिया और जहाँ मेरी माँ और चचेरी बहन बैठी थीं, उसी तरफ़ चलना शुरू किया। हमें मुख दर्शन के पास से गुजरना पड़ा और मैं रुक गई, और बाबा के दर्शन किए। मैं वास्तव में हैरान (बल्कि खुश) थी अपने बाबा को गुलाबी शाल पहने हुए देखकर। मैं पाठकों से अनुरोध करती हूं कि वे मेरे गुलाबी रंग के महत्व से संबंधित एक और लेख को पढ़ें। बाबा ने मुझे एक गुलाबी रंग की पोशाक उपहार करी थी और मैं अचरज मे थी कि मैं उसी गुलाबी पोशाक में थी !!! मुझे इस बात की पुष्टि हो गई कि मुझे तोहफा देने वाला बाबा के अलावा और कोई नहीं था। इस घटना ने मुझे बाबा से मिलने के लिए उत्सुक कर दिया।

मेरे बार-बार अनुरोध करने के बावजूद भी, मेरी माँ ने मुझे और मेरे चचेरे भाई को अकेले समाधि मंदिर में जाने की अनुमति दी। हम बस दर्शन द्वार की ओर भागे और मैं चार विशेष व्यक्तियों की तरफ़ से भेंट के लिए गुलाब के चार गुलदस्ते खरीदना चाहती थी। विक्रेता मुझे तीन गुलदस्ते दस रुपये में देने को तैयार था, लेकिन मैंने कहा कि मुझे चार चाहिए, और उसने बिना किसी बहस के मुझे आसानी से दे दिए। मैं बस अपने चचेरे भाई को मेरे पीछे पैसे भुगतान करने के लिए छोड़ दया । हालाँकि बाबा मुझसे कुछ मीटर की दूरी पर थे, पर वह बड़ी दूरी लग रहा था। इसलिए मैंने जितनी तेजी से हो सकता था, उतनी तेजी से दौड़ने की कोशिश की और अंत में मुख्य हॉल तक पहुंच गई । आह! बाबा का ऐसी विशालकाया मेरे सामने थी! मुझे ऐसा लगा जैसे बाबा थोड़ा मुस्कुरा रहे है और मेरा स्वागत कर रहे है। कतार में खड़े होने के दौरान मैं आसुओं में थी। मैं सोच रही था कि बाबा ने मुझे एक साल के बाद बुलाया लेकिन ऐसा आनंद दिया। मेरे पास शब्द नही थे और मैं लगातार बाबा की तरफ देख रही थी। मेरे पैर रुक गए लेकिन भावनाओं का प्रवाह चल रहा था। मैं बाहर की दुनिया को भूल गई और समाधि की सीढ़ियां चढ़ कर बाबा के चरण कमल में बैठने की कामना करने लगी। जब मेरी बारी आई तो मैं हुंडी के पास एक कोने में समाधि के सामने खड़ी हो गई और कुछ प्रार्थनाएँ की, जो मेरे साईं भाई और बहनों ने मुझे मौखिक रूप से बताईं थी। मुझे इसके अलावा और कुछ याद नहीं रहा!!! सुरक्षा गार्ड ने मुझे जल्दी से खत्म करने के लिए भी नहीं कहा, इसके बजाय उसने एक कोने में खड़े रहने को कहा ताकि दूसरों के जाने के लिए जगह बन जाए। मेरा चचेरा भाई मेरे पीछे था और हम दोनों बिना एक भी शब्द बोले वहाँ खड़े थे। इस तरह दस मिनट बीत गए और हमने निकलने का फैसला किया। मैं हर क्षण बाबा का दर्शन चाहती था इसलिए मैंने पीछे की ओर चलना शुरू कर दिया। मेरे चचेरे भाई ने कहा कि मेरे माता-पिता और भाई उसे दर्शन की कतार में दिखे। मैं जल्दी से उनकी लाइन में चली गई। ऐसा ही मेरे चचेरे भाई ने भी संकोच के साथ किया। फिर से हमे एक अद्भुत दर्शन का अवसर मिल और हम समाधि मंदिर से बहुत संतुष्ट होकर प्रस्थान हुए। हम तब साईं सतचरित्र खरीदने के लिए संस्था के स्टाल पर गए। हम नंद दीप की ओर आगे बढ़ रहे थे और हमने अपने पारिवारिक मित्रों को अपनी ओर आते देखा। वो दोनों दर्शन के लिए जा रहे थे और हम सब उनके कहने पर उनके साथ फिर से चले आए। एक बार फिर हमें दर्शन का मौका मिला। इस प्रकार दो घंटे हम बाबा के सामने समाधि मंदिर में रहे। आज जबकि इतने सारे भक्त शिरडी की ओर जा रहे हैं, उन्हें इतनी आसानी से बाबा के दर्शन होने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन बाबा ने इसे हमारे लिए संभव बनाया और यह उनकी कृपा और प्रेम को दर्शाता है। हम दर्शन करने के लिए आधे घंटे भी कतार में नहीं खड़ा होना पड़ा। बाबा हमें सीधे रास्ते से ले गए और ऐसा लगा जैसे उन्होंने हमारे लिए वीआईपी व्यवस्था की हो।

शाम को मेरे परिवार के सदस्य और पारिवारिक मित्र परंपरा के अनुसार नंद दीप के पास रंगोली और दिया जला रहे थे। पटाखे लगातार फट रहे थे। रंग-बिरंगे रॉकेटों की दृष्टि ने आकाश को उज्ज्वल बना दिया था और साथ ही पूरा शिरडी भी जगमगाते हुए दीपों से प्रकाशमान था। ऐसा लगता था कि आकाश और पृथ्वी में कोई अंतर नहीं रहा। ओह क्या स्वर्गीय नजारा था !!! इसके तुरंत बाद फिर से भावनाओं का प्रवाह हुआ और मेरी एक और इच्छा की पूर्ति हुई। शिरडी से लौटते ही यह पोस्ट किया गया है।

जब मैं अपनी मां के साथ वापस लौटी तो हमारे पारिवारिक मित्र इंतजार कर रहे थे। हम सभी दर्शन के लिए जाना चाहते थे लेकिन भीड़ के बारे में कोई अनुमान नहीं था । यह लगभग 8:30 बजे की बात थी और चूंकि हमारे पारिवारिक मित्र के बच्चे थे हम चर्चा कर रहे थे कि अंदर जाना है या नहीं। हमें किसी सुरक्षा गार्ड को नहीं देखा। गार्ड ने हमें मराठी में बोलते हुए सुना और इसलिए उन्होंने हमें मराठी में कहा कि मंदिर खाली था और हमें अंदर जाना चाहिए। समाधि के आसपास के कांच का कवर को उस समय हटा दिया गया था और हमे समाधि को छूने का सौभाग्य मिला जिससे दिलों में खुशी की लहर दौड़ गई ।

अगले दिन हमारे पास काकड़ आरती में भाग लेने के लिए जाने की कोई योजना नहीं थी क्योंकि हुमने दिवाली के दिन सुखद दर्शन किया था । काकड़ आरती शुरू होने से कुछ मिनट पहले ही मैं जग गई थी क्यूँकि मेरे पेट में दर्द था। मैं इसे सहन कर सकती थी, इसलिए मैंने अपनी मां को नहीं जगाई और तभी कक्कड़ आरती शुरू हुई। मैंने पूरी काकड़ आरती सुनी और लगभग 6 बजे जब सब कुछ शांत हो गया मैं सो गई । एक घंटे के बाद मेरी माँ ने मुझे जगाया और आश्चर्य से पेट का दर्द गायब हो गया !!! दोपहर में जब हम यह खोज रहे थे कि बाबा के लिए वस्त्र कैसे प्रदान कारें, हम समाधि मंदिर के पास आए और एक सुरक्षा गार्ड से पूछा। उन्होंने हमें रास्ता दिखाया और यह भी बताया कि दोपहर के भोजन का समय था और संबंधित अधिकारी शाम 4 बजे तक लौट आएंगे। इसलिए हमने सोचा कि हम समाधि मंदिर जाएं और फिर से हमें सुरक्षा गार्ड द्वारा सूचित किया गया कि मंदिर खाली है और हमें एक मिनट भी बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस प्रकार हमें बिना किसी धक्का या खींच तान के बिना फिर सुखद दर्शन मिला । हमारे घरों के सामने दिवाली के दौरान हम रंगोली बनाते है, यह महाराष्ट्रीयन परंपरा के अनुसार एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है, हम बाबा के घर पर थे इसलिए हमने सोचा कि क्यों न हम भी होटल के बाहर रंगोली बनाएं, क्योंकि यह हमारा घर है और शिरडी नामक पवित्र भूमि है। होटल के अधिकारियों से अनुमति लेने के बाद, शाम को हमने रंगोली के साथ ‘साई तेरी लीला’ लिखा और कई दीपकों से एक दीपक बनाया, क्योंकि शिरडी पहुँचने के बाद से ही हम साईं की लीलाओं को देख रहे थे और यह मेरे पसंदीदा भजनों में से एक है।

अगले दिन गुरुवार था और हर तरफ भक्तों की भीड़ थी। यह हमारी दिनचर्या है कि हम बाबा को सुबह की चाय से ही सब कुछ अर्पित करते हैं। चूंकि हम दो दिन से शिरडी में थे, हमने द्वारकामाई में बाबा को चाय चढ़ाने का फैसला किया। भीड़ के कारण हमें दो घंटे तक कतार में खड़ा होना पड़ा और जब तक हम द्वारकामाई पहुंचे, गर्म चाय ठंडी हो गई। फिर भी सुरक्षा गार्ड ने हमें आगे आने दिया और हमें बाबा को चाय देने के लिए कहा। बाबा जो भगवान के रूप हैं, केवल हमारी भावनाओं की परवाह करते हैं और हमारे प्रेम की कामना करते हैं। हम अच्छी तरह जानते हैं कि ठंडी चाय को उन्होंने सहजता से स्वीकार कर लिया था। हम ने दो दिनों के लिए सुखद दर्शन किए इसलिए हमने उसी शाम शिरडी छोड़ने का फैसला किया। अंत मे मैं कुछ बातें बताना आवश्यकता समझती हूँ जो सोचने योग्य हैं और बाबा की लीला को साबित करती हैं।

1. अगर मेरे भाई को प्यास नहीं लगती और सुरक्षा गार्ड हमें लेंडीबाग के पास जाने के लिए नहीं कहता, तो मुझे बाबा के मुख के दर्शन नहीं मिल सकते थे और तब मेरा दिल कभी उनके दर्शन के लिए उत्सुक नहीं करता ।

2. अगर सुरक्षा गार्ड हमें समाधि मंदिर के अंदर जाने की सलाह नहीं देते, तो हम बाबा की समाधि को छूने में सक्षम नहीं होते।

3. अगर अगले दिन सिक्योरिटी गार्ड ने हमें सलाह नहीं दी होती, तो हमें इतनी शांति से दर्शन नहीं मिलता।

4. अगर मेरे पेट में दर्द नहीं होता, तो मैं कक्कड़ आरती नहीं सुन पाती। यह सब देखकर, मुझे वास्तव में लगा कि बाबा ने प्रत्येक सेकंड की योजना बनाई थी और मेरे दिल से पुकार आइ- सदगुरु साईनाथ महाराज की जय हो !!!

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Translated By Rinki
Transliterated By Supriya

© Sai Teri LeelaMember of SaiYugNetwork.com

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