साईं भक्त प्रत्याशा कहती है: ओम साईं राम हेतल जी, मेरे भाई तन्मय नाथ अपने अनुभवों का विवरण देना चाहते हैं कि किस प्रकार साईं बाबा ने उन्हें उनके व्यवसाय में मार्गदर्शन दिया|
तन्मय जी के शब्दों में अनुभव इस प्रकार वर्णित है: मैं बहुत ही धन्य और आभारी रहूँगा यदि आप इस अनुभव को अपने ब्लॉग में पोस्ट करें, ताकि सभी भक्त साईं लीला के बारे में जान पायें। मैं भारतीय विद्यापीठ विश्वविद्यालय पुणे में बी.ए. का विद्यार्थी था और मेरा कोर्स जून 2009 में समाप्त होने वाला था। साईं नाथ की कृपा से वर्ष 2008 में ही विप्रो टेक्नोलॉजी में मेरा चयन हो गया था, लेकिन ज्वाइन करने की तारीख, जगह और अन्य औपचारिकताएं बाकी थीं।
समय बीतता गया और वर्ष 2008 खत्म होकर 2009 चालू हो गया था। लेकिन विप्रो से किसी प्रकार का कोई समाचार नहीं मिला। मेरी चिंता बढ़ रही थी क्योंकि विप्रो में नौकरी मिलने के कारण मैंने एम.बी.ए में प्रवेश की परीक्षा भी नहीं दि थी। अपने इंजीनियरिंग कोर्स के बाद मैं क्या करूँगा, कुछ भी निश्चित नहीं था। मुझे एम.बी.ए करने में कोई रुचि भी नहीं थी क्योंकि मेरी रुचि शोध (रिसर्च)और तकनीकी क्षेत्र में थी।
पिछले वर्ष मैंने गेट और जी.आर.ई की परीक्षा दी थी और सफल भी हो गया था, लेकिन इस वर्ष असफल रहा। मेरे सभी मित्रों को एम.बी.ए कॉलेज से बुलावा आ रहा था, इससे मेरी चिंता और बढ़ गई। महीने बीतते गए, और जनवरी 2009 से मई 2009 आ गया, मगर कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था। अब मैं बहुत परेशान हो चुका था और मानसिक तौर पर तैयार था कि मेरा यह साल बर्बाद हो जायेगा।
इसी बीच मैंने एम.एस और एम.टेक. के लिए आइ.आई.टी मद्रास, आई.टी बीएचयू और देश के कई एन.आई.टी में अपने पिछले साल के गेट स्कोर के आधार पर अप्लाई किया, लेकिन जल्द ही एक और धक्का लगा जब आइ.आई.टी मद्रास से खेद सहित पत्र प्राप्त हुआ। इस बार मैं पूरी तरह टूट गया था।
तब मेरी बड़ी बहन (जो की साईं बाबा की भक्त है) ने मुझे साईं बाबा से प्रार्थना करने और अगले गुरुवार को साईं मंदिर जाकर फूल और नैवेद्य चढ़ाकर पूजा करने और बाबा की कृपा प्राप्त कर मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए कहा। अगले गुरुवार मैंने यही किया। मैं उस वक्त पुणे में था। ठीक एक हफ्ते बाद मेरे आश्चर्य का ठिकाना ना रहा, जब मुझे अगले गुरुवार को एम.टेक करने के लिए प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंटरव्यू के लिए पत्र मिला।
इंटरव्यू ठीक 2 सप्ताह बाद बनारस में था और मुझे आई.टी बीएचयू में प्रवेश मिल गया। मुझे 8000 रु. की छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) भी मिली। कुछ ही दिनों में मुझे उन सभी कॉलेज से कॉल आइ जहाँ भी मैंने दाखिले के लिए अप्लाई किया था। इतना ही नहीं, बल्कि मुझे विप्रो के मानव संसाधन (HR) बिभाग से ई-मेल भी आया, कि आर्थिक मंदी के कारण सभी नई भर्तियाँ जनवरी 2010 तक आगे बढ़ा दी गई हैं। साईं कृपा से एक माह के भीतर ही मेरे भविष्य को एक मार्गदर्शन मिल गया था।
मैं जून 2009 में अपने कोर्स को खत्म कर पुणे आया, और शिरडी जाने का तय किया। लेकिन एक छोटी समस्या थी। मैंने अपने घर के लिए पहले ही टिकट करा ली थी और शिरडी जाने की तारीख और वापसी उसी दिन थी। मैंने शिरडी जाना तय किया, लेकिन समस्या यह थी कि घर जाने की मेरे पास टिकट कैंसल कराने का समय नहीं था। रेलवे नियम के अनुसार, यदि समय पर टिकट कैंसल नहीं होती है, तो पैसा जब्त हो जाता है। मैं अपनी लापरवाही से पैसा व्यर्थ नहीं करना चाहता था। मैंने अपने कुछ मित्रों से भी शिरडी रेलवे स्टेशन के बारे में पूछा जिससे कि वहाँ टिकट कैंसल करा सकूँ। किसी को पता नहीं था। उन्होंने कोपरगांव रेलवे स्टेशन के बारे में मुझे बताया, जो कि शिरडी से 30 मिनट दूर है।
मैंने तय किया कि दर्शन के बाद जाऊंगा। शिरडी के साईं मंदिर में दर्शन के बाद मैं बाहर निकला और सुरक्षा कर्मी से कोपरगांव जाने का रास्ता पूछा। उसने मुझसे पूछा “आपको कोपरगांव क्यों जाना है?” मैंने कहा “मुझे रेलवे स्टेशन जाकर अपनी टिकट कैंसिल करनी ह। यदि टिकट कैंसल नहीं हुई तो पैसा बर्बाद हो जायेगा।” उसने कहा “आपको कोपरगांव जाने की ज़रूरत नहीं है। साईं मंदिर में ही रेलवे रिजर्वेशन काउंटर है। आप वहाँ जाकर 10 मिनट में टिकट कैंसल करा सकते हो।” इतना सुनकर मेरे चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान आ गई। मैंने उस कर्मी और साईं नाथ महाराज को, जिन्होंने उस सुरक्षा कर्मी के रूप में मेरी मदद की, उन दोनो को धन्यवाद दिया। मैंने तुरंत टिकट कैंसल कराइ और पैसा वापस लिया और उसी दिन पुणे वापस आ गया। अपनी बहन की सलाह पर वहाँ से साईं चरित्र भी लेकर आया।
कार्यक्रम के अनुसार 15 जुलाई 2009 को मैंने आई.टी बी.एच.यू बनारस में एम.टेक में प्रवेश लिया और साई सत्चरित्र का कुछ हिस्सा पढ़ना चालू किया। लेकिन कोर्स ज्वाइन करने के तुरंत बाद ही मैं बीमार पड़ गया। लगभग 2 हफ्ते मैं बीमार था और घर आ गया। कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, लेकिन बहुत ज्यादा कमजोर हो गया था। दवाई भी ली, लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। मेरे माता-पिता परेशान थे। रक्षाबंधन के दिन 5 अगस्त को मेरी बहन मुंबई से आई। आते ही उसने मेरे माथे पर उदी लगाई और कुछ मुझे खाने को दी। विश्वास कीजिये उसी क्षण से मुझमें ताकत आने लगी और 5 दिनों में ही वापस कॉलेज आ गया।
हमारे कर्मों के कारण हमें जीवन के हर कदम पर मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन हमें बाबा में श्रद्धा और धैर्य बनाये रखना चाहिए जो कि सगुण अवतार हैं। उनकी कृपा से मुसीबत जैसे आती हैं, वैसे चली भी जाती हैं।
मेरे अंतिम वर्ष का परिणाम तब तक घोषित नहीं हुआ था और 30 सितंबर 2009 आई.टी. बीएचयू में मूल परिणाम जमा करने की आखिरी तारीख थी, वर्ना मेरा प्रवेश रद्द हो सकता था। मेरे अलावा मेरी कक्षा के सभी छात्रों ने अपने परिणाम जमा कर दिए थे। जब तक सारे छात्र परिणाम जमा नहीं करते, हमारी छात्रवृति भी नहीं दी जा रही थी।
स्वाइन फ्लू के कारण मेरा कॉलेज पुणे में बंद था। मेरे से ज्यादा मेरी बहन परेशान हो गई थी कि अब क्या होगा। मैंने उसे समझाया कि वो चिंता ना करो, और बोला कि हम कर ही क्या सकते हैं। हम परिणाम तो घोषित नहीं करा सकते। सब कुछ साईं चरणों में है। उन्होंने मुझे विधालय में प्रवेश दिलाया है तो आगे भी राह दिखाएंगे।
आपको बताते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि दो दिन पहले मेरा परिणाम आ गया और मेरे पुणे के मित्र ने बताया कि मैंने विशिष्टता (डिस्टिंक्शन) हासिल की है। साईं बाबा ने मुझे वित्तीय राहत भी दिलाई और मेरी छात्रवृत्ति की राशि 800 रु. से बढ़कर 1200 रु. हो गई।
मई के महीने से अब तक के इन अनुभवों ने साईं बाबा के और उनकी शिक्षाओं के प्रति मेरी सोच को पूरी तरह बदल दिया है। मैं पहले भी कई बार शिरडी गया था लेकिन उनकी महिमा को अनुभव नहीं कर पाया था। मुझे लगता है कि ऐसा तभी होता है, जब बाबा की कृपा होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए हमें अपनी समस्याओं को उनके चरण कमलों में समर्पित कर, विश्वास सहित धैर्य धारण करना चाहिए। मेरे भविष्य के मार्गदर्शन के लिए मैं बाबा का आभारी हूँ।
हम सभी पर कृपा करने के लिए मैं बाबा से प्रार्थना करता हूँ।
ओम साईं राम
श्री सच्चिदानंद सद्गुरु साईं नाथ महाराज की जय!