साईं भक्त सचिन कहते हैं: कल हमने पढ़ा था कि कैसे बाबा ने सचिन को अपनी ओर खींचा और अब इस पोस्ट में उन्होंने बताया है कि उन्हें बाबा की कृपा से कैसे नौकरी मिली।
हमारे बाबा अद्भुत हैं, जिनकी कृपा के कारण उनके भक्त बिना किसी भय के सो सकते हैं और जिनके संरक्षण में हमने अपने परिवारों और दोस्तों की भलाई को छोड़ दिया है। मैंने बाबा के बारे में अपना पहला अनुभव पहले ही पोस्ट कर दिया था, कि कैसे मुझे उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त हुई और कैसे बाबा ने मुझे स्वप्न के माध्यम से श्रद्धा (विश्वास) और सबुरी (सब्र) का रास्ता दिखाया और फिर मैं साईं सच्चरित्र पड़ने लगा। हर समय, बाबा ने लगातार मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर उनका पवित्र पुस्तक द्वारा या फिर सपनों में देते रहें हैं।
अक्टूबर 2007 का महीना था, जब मैं नौकरी खोज रहा था और अगल-बगल मैं अपने घर के पास बाबा जी के मंदिर में दर्शन करने जाता था। मैं अपना ज्यादातर समय मंदिर में ही बिताता था क्योंकि हमेशा वहाँ पर बैठे मुझे परमानंद की अनुभूति होती थी और बाबा जी के भजन की धुन सुनता था, जिसकी गूँज किसी के भी मन को आनंद से भर देती है। यह पूरी तरह से दिव्य था। इसी दिनचर्या में दिन बीतते गए लेकिन मुझे कोई नौकरी नहीं मिली। तब मैं मर्चेंट नेवी (व्यापारी नौसेना) के लिए एक इंटर्व्यू के लिए गया।
बाबा की कृपा से मैं उस इंटर्व्यू और मेडिकल चैकप में सफल हो गया। सब कुछ तैयार था और मैं मर्चेंट नेवी में शामिल होने वाला था। लेकिन मेरी मां मेरे व्यापारी जहाज मे नौकरी करने की बात से बहुत डरती थी। व्यापारी जहाज में लोगों को जहाज में ही महीनों गुजारने पड़ते हैं। वह समुद्री दुर्घटनाओं (जैसे जहाज के डूबने) से भी डरती थी। उसने मुझे इस सब के बारे में नहीं बताया लेकिन अंदर ही अंदर वह डर रही थी। वह भी बाबा जी की भक्त है। मैंने उससे कहा कि जहाँ तक बाबा मेरे साथ हैं, कोई भी मुझे चोट नहीं पहुँचा सकता, मेरे साथ कोई दुर्घटना नहीं हो सकती। लेकिन अंदर से मुझे इस बात पर भी यकीन नहीं था (मैं इतना मूर्ख हूं कि मैं अपने बाबा जी की महानता को समझ नहीं पाया)। हमने समुद्र में डूबते जहाजों के बारे में बहुत सुना है। मैं फिर बाबा जी के मंदिर में आया और चुपचाप उनकी मदद के लिए प्रार्थना की। घर लौटने पर, मैंने इंटरनेट पर एक ब्लॉग खोला जो समुद्री दुर्घटना के बारे में था। मैं यह देखकर चकित रह गया कि मेरी प्रार्थना का उत्तर जल्दी से मिल गया।
मैंने उस ब्लॉग को पढ़ना शुरू किया जिसमें एक कहानी थी (ज्यादातर साईं भक्त इस कहानी से अवगत हैं) एक कप्तान की जो पहले विश्व युद्ध के दौरान नौसेना में थे। वे बाबा जी के भक्त भी थे। युद्ध के दौरान वह जहाज पर था, जब अचानक उसका युद्धपोत डूबने लगा। कई लोग समुद्र में डूब गए। जब उन्हें कोई विकल्प नहीं मिला तो अपने दयालु भगवान साई बाबा से प्रार्थना करना शुरू किया। अचानक उसने देखा कि एक विशाल हाथ उस लकड़ी के खंबे को पकड़े हुए है, जिस पर कप्तान लेटा हुआ था। कप्तान बच गया। दूसरी तरफ, जब यह घटना हो रही थी तब बाबा अपने भक्तों के साथ द्वारकामाई में बैठे थे। अचानक द्वारकामाई पानी से भर गया और वहाँ बैठे भक्त बड़ी उत्सुकता से यह सब देख रहे थे। अचानक बाबा जी ने हाथ उठाया जैसे वो किसी को बचा रहें हो और वह खुद भीग गए। यह सब देखकर भक्त आश्चर्यचकित रह गए। भक्तों में से एक ने इस पानी को पवित्र जल (तीर्थ जल) मानते हुए पिया और उसने पाया की उसका स्वाद नमकीन था, जैसे कि यह समुद्र का पानी हो। लेकिन वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है। एक या दो सप्ताह बाद ही जब कप्तान बाबा जी के दर्शन के लिए आए तो उन्हें पता चला कि बाबा जी ने क्या लीला की थी।
यह अनुभव पड़कर मेरी आंखों में आंसू आ गए और समुद्र और मेरी नौकरी के बारे में सभी का भय गायब हो गए। मैं बाबा जी के सर्वव्यापी गुण को महसूस कर सकता था। यह अनुभव हर बार मुझे झकझोरता है जब भी मुझे याद आता है कि बाबा जी ने मेरी प्रार्थना का इतनी जल्दी कैसे जवाब दिया था और वह भी इतने उपयुक्त तरीके से। यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि बाबा जी अभी भी हमारे साथ हैं और वह हमेशा हमारे साथ रहेंगे। मैं हर समय बाबा जी की उपस्थिति को अपने पास महसूस कर सकता हूँ जैसे कि वो मेरे साथ यहाँ हो। मैं अन्य कारणों से व्यापारी जहाज में शामिल नहीं हुआ, लेकिन वह भी बाबा जी की कृपा के कारण था। अब मैं एक आईटी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम कर रहा हूं। मुझे यहां नौकरी कैसे मिली यह भी बाबा जी की लीला है। यह अनुभव मैं अपने अगले मेल में बताऊँगा। ओम साई राम।