साईं भक्त सचिन कहते हैं: साईं राम जी| मैं आपको अपना निजी अनुभव भेज रहा हूं की किस प्रकार हमारे गुरु श्री साई बाबा ने मुझे अपनी छत्र छाया में लिया। आशा करता हूँ की आप मेरी भावनाओं को समझ पाएंगी। मैं अपने अनुभव आप तक पहुंचाता रहूंगा। बाबा जी और उनके भक्तों के लिए यह नेक काम करने के लिए धन्यवाद। बाबा जी हमेशा आपके साथ रहें। जय साईं राम|
यह दिसंबर 2006 की बात है, जब अमृतसर में मैंने पहली बार बाबा जी के मंदिर में कदम रखा था। तब धुप आरती का समय था और पुजारी जी आरती की तैयारी कर रहे थे। फिर वह क्षण आया, जब मेरे जीवन ने एक अनोखा मोड़ लिया, एक ऐसा मोड़ जो मुझे बाबा की कृपा और उनकी दिव्यता की दुनिया में ले आया। जैसे ही आरती शुरू हुई उसके पहले शब्द से ही मेरे शरीर में कंपन होने लगी। जैसे जैसे आरती गायी जा रही थी उसके हर एक बीतते क्षण मैं मेरे शरीर को ठंडक और शांति का महसूस कर रहा था। अपनी आँखें बंद करके मैं आरती के समाप्त होने तक वहीं खड़ा रहा। बीच-बीच में, मैं अपनी आँखें खोलकर बाबा के सुन्दर मुख के दर्शन करता| मूर्ति के नीचे बाबा की द्वारकामाई का चित्र रखा गया था, जिसे जयकर जी ने बनाया था (बाबा उन्हें भी अपने पवित्र चरणों में शरण दे)। यह चित्र भी इतना सजग लगता है, की कोई भी उस चित्र से आसानी से अपनी आँखें नहीं हटा सकता,क्यूंकि ऐसा लगता है की स्वयं बाबा हमारी ओर देख रहे है और उनकी आँखों को देख कर कुछ समय के लिए हमें लगता है कि हम किसी दूसरी दुनिया में हैं। मैं भी उसी अवस्था में था। मंदिर में घंटियाँ बज रही थीं और ऐसा लग रहा था जैसे साई महाराज स्वयं हमारे सामने खड़े हैं। आरती समाप्त हुई, मैंने जो भी देखा और महसूस किया उससे मैं परम आनंद का महसूस कर रहा था| पुजारी जी से मैंने बाबा की सभी आरतियों के समय के बारे में पूछा फिर बाबा जी को प्रणाम करने के बाद मैं घर चला गया। रात में फिर से शेज आरती के लिए मैं आया, इससे मुझे और भी शांति मिली और ऐसा लगा जैसे मुझे अपने जीवन का सच्चा आनंद मिल गया हो। बाबा के सोने के बाद मैं घर चला गया।
उसी रात जब मैं सो रहा था, मैंने अपने सपने में एक पुराना मंदिर देखा (वह मंदिर जो मेरी नानी के घर के पास शिमला में है और मैं वाहा अक्सर जाता था)। मैंने उस मंदिर के बाहर एक फकीर को खड़ा देखा, जिसने बाबा के जैसे ही पोशाक पहनी थी, कफनी, सटका और झोली भी था। उन्होंने मुझसे दो रुपये मांगे जो मैंने उन्हें तुरंत ही दे दिए और वो वहा से चले गए। यह था मेरा सपना । जब मैं उठा, तो मुझे स्पष्ट रूप से सपना याद था लेकिन मेरे दिमाग में यह विचार बिलकुल भी नहीं आया कि वो बाबा हो सकते है। फिर हमेशा की तरह मैं सुबह काकड़ा आरती के लिए मंदिर गया। उस समय केवल पुजारी जी और एक और भक्त थे। हम तीनों ने आरती की। तब उन दोनों ने मुझे मंदिर की सफाई, बाबा जी के मंगल स्नान और उनके श्रृंगार के लिए शामिल होने के लिए कहा। इस कार्य को करने के लिए मैं जैसा महसूस कर रहा था उसे मैं शब्दों में नहीं बता सक्ता। यह अलौकिक था। बाबा जी को नैवैद्य अर्पण करने के बाद, उस भक्त ने मुझे साईं सच्चरित्र दिया। मैंने उस पवित्र पुस्तक के कुछ पृष्ट ऐसे ही खोले, और आश्चर्य की बात है मैंने जो पहला पृष्ठ खोला उसका शीर्षक था “2 रु दक्षिणा का महत्व”।
अचानक मुझे मेरा सपना याद आया और मैंने उस अध्याय को पढ़ना शुरू किया, जिसमें बताया गया है की बाबा अक्सर अपने भक्तों से दो रू दक्षिणा माँगा करते थे। इन दो रुपयों का अर्थ भौतिक नहीं है जैसा की प्रतीत होता हैं। यह बाबा का अपने भक्तों से दो चीज़े मांगने का तरीका था जो: श्रद्धा (विश्वास) और सबुरी (धैर्य) है। इस प्रकार बाबा ने एक अद्भुत अनुभव के माध्यम से मुझे अपना पहला और महत्वपूर्ण संदेश दिया। बाबा जी के सिखाने का तरीका ही अनोखा होता है। वह हमेशा सबसे उचित तरीका ही अपनाते हैं ताकि वह अपने भक्तों को कुछ ऐसी शिक्षा दे जो हमेशा के लिए उनके मन में बस जाए। मुझे तो उन्होंने सपने में दर्शन दिए और उसके माध्यम से यह दिव्य संदेश दिया कि अपनी प्रार्थनाओं का उत्तर पाने के लिए उत्सुक न हों, अपने गुरु पर विश्वास करें और थोड़ा धैर्य रखें, बाकी सब उनपर छोड़ दे वह निश्चित ही सब अच्छा करेंगे।