साईं भक्त भूषण कहते है: सभी प्रिय साईं भक्तों को जय साईं राम| लंबे समय के बाद, मैं अपना हालही में हुआ अनुभव सभी साईं भक्तों के सामने ले कर आया हूं। बाबा की कृपा से मेरे जीवन में बहुत सारे अनुभव हो रहे हैं। उनमें से कुछ काफी अविस्मरणीय, उल्लेखनीय और मन को छू लेने वाले हैं। उन्हीं अनुभवों में से एक कुछ दिन पहले हुआ था। यह कोई बड़ी घटना तो नहीं थी लेकिन यह श्राद्ध से संबंधित है, इसीलिए महत्वपूर्ण है। 3 अप्रैल के दिन, शुक्रवार को (गुरुवार और शुक्रवार दोनों बाबा का दिन है। पूरी दुनिया में भक्त इन दोनों दिनों में अपनी विनम्र प्रार्थना उनसे करते हैं। बाबा स्वयं कहते थे, “जो भी मेरे गुरुस्थान पर आके गुरुवर को धुप और शुक्रवार को लोबन जलाएगा उनका सदा भला होगा”)। सुबह के लगभग 10:45 बजे। तब मैं अपने कार्यालय में ही था। यह वास्तविक (लेकिन मेरे लिए बहुत कठिन) सत्य है कि मैं अपने परिवार के सदस्यों की तरह भाग्यशाली नहीं था। जैसी मेरे मालिक की मर्ज़ी मैं उनसे नहीं मिल सका।
वह एक नियमित दिन था, मेरी पत्नी कंपाउंड क्षेत्र में अपना काम कर रही थी। वह एक ग्रहणी है और वह बाबाजी पर अटूट विश्वास रखती है। एक फकीर बाबा (उनकी उम्र लगभग 58-60 वर्ष होगी) वे हमारे घर आए और चुपचाप खड़े थे। सबसे पहले मेरी पत्नी ने उन्हें देखा, वे हमारी घर की गेट के बाहर खड़े थे। उनकी पवित्र शब्दों के अनुसार, हम अभी भी बाबाजी के उपदेश और सन्देश से बहुत सी बातें सीखने और उनका पालन करने की कोशिश कर रहे हैं।
“अपने घर से कभी भी किसी को खाली हाथ ना भेजे और ना ही कभी किसी की उपेक्षा करें। जिस किसी को भी आपकी मदद की आवश्यकता हो उनकी मदद करे। आपसे जो भी संभव हो वह सब करें। कृपया कर भोजन, पानी या जो कुछ भी आवश्यक हो, दें। यदि आप कुछ भी देने की स्थिति में नहीं हैं, तो विनम्रता पूर्वक उनसे क्षमा माँगें, लेकिन किसी की उपेक्षा या अपमान न करें।
तो, इस तरह की विचारधारा का पालन करते हुए, मेरी पत्नी ने उस फ़क़ीर से पूछा “बाबाजी, क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकती हूँ? आप क्या चाहते हैं? “उन्होंने धीरे से उत्तर दिया:” बेटी, थोडा चाय मिलेगा? “उसने कहा” हा जरूर, बाबाजी आप आइये बैठिये मैं अभी बाना कर लाती हूँ।उन्होंने विनम्रता से घर के अंदर आने से इनकार कर दिया और कंपाउंड में ही बैठने का आग्रह किया। मेरी पत्नी और पिताजी के काफी समय तक अनुरोध करने पर भी वह भीतर नहीं आये। उन दोनों के अनुरोध का सम्मान रखते हुए फ़कीर बाबा ने कंपाउंड में कुर्सी पर बैठना स्वीकार किया वरना वो तो नीचे ज़मीन पर ही बैठना चाहते थे। किन्तु वह घर के भीतर नहीं आये।
जब उन्होंने पूरी कप भर कर चाय देखा, तो कहा: “मुझे इतनी अधिक चाय नहीं चाहिए, कृपया इसे कम कीजिये” उन्होंने थोड़ी सी ही चाय पी और फिर पानी मांगा। इन सब के बाद, उन्होंने अपने ही अंदाज में आशीर्वाद दिया और कहा “तुम साईं को मानती हो ना? उनपे श्रद्धा रखना, जीवन मे कभि ना घबराना, वो सबका भला ही करता है, गुरुवार का व्रत करते रहना, माता-पिता की सेवा करना, बच्चे को अच्छी शिक्षा देना और ऐसे ही साईं नाम लेते रहना।
यह सब बातें सुनकर वह हैरान रह गई।
मेरी पत्नी ने फिर से उन्हें पूछा कि क्या उनकी कोई और भी इच्छा है? उसने बाबाजी से दोपहर का भोजन करने के लिए भी अनुरोध किया, यदि कुछ और समय इंतजार कर सकते है तो। उन्होंने कहा, “कुछ भी नहीं चाहिए और चाय के लिए धन्यवाद”। मेरी पत्नी ने उनसे कहा “बाबाजी, हम आपकी कुछ और सेवा करना चाहते हैं, कृपया हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार कुछ बताएं”। फिर उन्होंने कहा “ठीक है, यदि स्वेच्छा से तुम चाहती हो के मेरे लिए कुछ करो तो फिर “कृपया, मुझे एक मटका दो – एक सादा पानी का मटका, मेरा मटका टूट गया है”! कितनी साधारण सी मांग है !
स्वाभाविक सी बात है, उस समय एक साधारण और नया मटका उनके पास उपलब्ध नहीं था। इसलिए, मेरे पिता ने उनसे इसके लिए कुछ समय मांगा या फिर कोई दूसरा विकल्प।
हमारे परिवार वालों ने उनको खाली हाथ ना जाने का बहुत अनुरोध किया। तब फ़कीर बाबा ने कहा, “ठीक है,यदि आप इतना आग्रह कर रहे हैं, तो मुझे मटका खरीदने के लिए 35 रुपये दें।” उन्होंने कहा “आप दिल से दे रहे हो ना? दिल को दुखी करके मत देना। और यकीन करो इस पैसे का मटके के सिवा कोई गलत उपयोग नहीं होगा।” अंत में उन्होंने कहा “बेटी, साईं को जीवन में कभी मत भूलना और दही और चीनी द्वारकामाई में बैठे साईं को चढ़ा के सबको साई नाम लेते हुए बांट देना, सब मंगल ही होगा।”
इस 15 से 20 मिनट की छोटी सी यात्रा के बाद वे वाहा से चले गए। केवल हमें यह दुख था कि हमारे घर को पवित्र बनाने के लिए वे घर के भीतर नहीं आये!!
जब मैं लगभग 6:15 बजे कार्यालय से आया, तो मुझे मेरे घरवालों ने सब कुछ बताया। स्वभावतः मेरे परिवार वाले उनके व्यक्तित्व और उनके बातों से बहुत प्रभावित थे। उनके चेहरे पर अनोखा तेज था। वे जीवन की विचारधाराओं के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से बात कर रहे थे। हमें पूर्ण विश्वास है कि बाबा हमारा ध्यान रखने के लिए, महत्वपूर्ण बातें सिखाने के लिए और आशीर्वाद देने के लिए हमारे घर आए थे।
नीचे दिए गए कुछ प्रश्नावली ~ देखकर आप सभी समझ जाओगे
1.) बिना घर के अंदर गए या बिना देखे ही उन्हें कैसे पता चला कि हमारे घर में बाबा की “द्वारकामाई” वाली तस्वीर हैं। (हम बाबा को एक बड़ी सुन्दर सी तस्वीर के रूप में जैसे की वो द्वारकामाई में अपने अलग अंदाज़ में बैठते है उस तस्वीर को शिरडी से लाए थे)। उसे हमने अपने ड्राइंग रूम में लगाया है और हमें हमेशा ऐसा प्रतीत होता है कि वे हमारी तरफ देख रहे हैं और हमेशा हमारे साथ हैं वो हमारे परिवार का ही हिस्सा है। इसीलिए उस फ़कीर बाबा का यह कथन काफी आश्चर्यजनक था !
2.) उन सज्जन में काफी धैर्य और संतुष्टि थी क्योंकि उन्होंने केवल थोड़ी सी चाय (आधे कप से भी कम चाय) की मांग की थी और केवल 35 रुपये स्वीकार किए थे (उनको 40 रूपए देने पर भी उन्होंने स्वीकार नहीं किया)। उनकी कोई और इच्छा या किसी भी प्रकार का लालच नहीं था। इस स्तर तक कौन रह सकता है?
3.) उन्होंने हमें इतना आशीर्वाद क्यों दिया ?? वो भी बिना किसी बातचीत या किसी दूसरे इरादे के !!!
4.) वह हमारे घर ही क्यों आये थे? जबकि हमारे इलाके में अन्य 26 बंगले हैं। केवल हमारे घर को ही क्यों उन्होंने चुना, क्या कारन होगा?? यह तो केवल भगवान ही जाने।
5.) उनके शब्द काफी प्रभावशाली और आज्ञाकारक थे। उन्होंने हमारे प्यारे साईनाथ जैसी विचारधाराओं पर ही बात की… !!
6.) मेरे बहुत काम है, मेरे पास समय नहीं है। इसका क्या मतलब है ?? उन्हें किस प्रकार का “काम” करना है? मानो वह फकीर सचमुच बाबा ही हो !!! भला एक फकीर को क्या काम हो सकता है ???
7.) उन्होंने इस गर्मी के मौसम में मटके की मांग की। किस लिए?? बाबा जब देह धारी थे तब स्वयं ही मटके में कुएँ का या तालाब का जल लाकर उसका उपयोग करते थे। इसके अलावा, बाबा अक्सर अपने भक्तों को मटके का उधारण देते हुए संकेत देते थे कि “इस संसार में सब कुछ नश्वर है(नाश होनेवाला), सिवाय सर्वशक्तिमान भगवान के – “अल्लाह मालिक” वो अक्सर कहेते थे “इंसान बिलकुल मटके की तरहा होता है !”
8.) उन्हें कैसे पता चला कि मेरी पत्नी साईबाबा की दृढ़ भक्त है? (क्यूंकि जब वह गेट पर खड़ी थी तब शांत थी) और कैसे उन्हें पता चला कि वह गुरुवर का व्रत (उपवास) कर रही है?
इन प्रश्नों के उत्तर वाकई में नहीं है! मालिक की लीला वही जानते है, हमें तो बस उनका गुण गान करना है।
साईं नाथ हम पर अपना आशीर्वाद बनाएँ रखे।