Shirdi Sai Baba’s Guru – Shri Gopalrao Keshavraj Babasaheb (Part 2) से अनुवाद
अब गोपालराव महाराज सेलु आ चुके थे। एक दिन उनसे मिलने के लिए पठारी गावँ से एक स्त्री अपने बच्चे के साथ आई। गोपालराव महाराज ने उन्हें रहने के लिए जगह दी। गोपालराव जी को संस्कृत का अच्छा ज्ञान था, उस बच्चे को भी उसका लाभ हुआ और उसने महाराज से संस्कृत सीखी। गोपालराव जी अब अपना सारा ज्ञान उस बचे को देने लगे। महाराज ने उसे योगासन और ध्यान करना भी सिखाया। वह बच्चा काफी होशियार था इसीलिए महाराज उसको जो भी समझाते वो तुरंत समझ जाता। इसीलिए गोपालराव जी अपना ज्यादा समय उस बचे के साथ बिताने लगे।
गोपालराव जी को जन्म से ही ब्रह्मज्ञान मिल चूका था। इसीलिए उनके कई सारे शिष्य और अनुयायी उनके पीछे पड़े थे। शुरूवात में तो गोपालराव जी उन सभी के साथ समय बिताते थे, पर उस बालक शिष्य के कारण महाराज बाकि दूसरे शिष्यों के साथ उतना समय नहीं बिता थे। इस कारण दूसरे बच्चो के मन में उस बालक को लेकर ईर्ष्या और क्रोध उत्त्पन होने लगा। जैसे ही गोपालराव जी को इस बारे में पता चला वो तुरंत ही उस बालक को लेकर उस किले में ले गए जिसकी उन्होंने मरम्मत की थी और जिसके वो स्वामी थे।
किसी को उस बच्चे की जाती का ज्ञान नही था पर सबको संदेह था की वो मुस्लमान है और गोपालराव जी ब्राह्मण थे।स्वाभिविक रूप से उनके शिष्यों और अनुयायियों को उन दोनों के इतने गहरे रिश्ते से आपत्ति थी। इसीलिए गोपालराव महाराज उस बच्चे को लेकर सेलु छोड़कर चले गए। इसका उनके अनुयायी और शिष्यों पर बुरा प्रभाव पड़ा और वो लोग बच्चे के प्राण लेने ले लिए तैयार हो गए।
कुछ लोगो ने गुरु और शिष्यों को काफी ढूंढ़ने की कोशिश की। कई जगह ढूढ़ने के बाद उस शिष्य मंडली को वो एक रात मिले, उस समय गोपालराव जी उस बच्चे के पास सो रहे थे और वो बच्चा भी वहीं सो रहा था। उस अवसर को उचित मानकर उन लोगो ने एक बड़ी ईंट उस बच्चे के सर पर मारी (ऐसा कहा जाता है कि ये वही ईंट है जो की बाबा की समाधी में रखी गई है,) पर गलती से उस ईंट से गोपालराव जी घायल हो गए।
तुरंत ही वो बच्चा समझ गया की वो पत्थर किसने और किस कारण से फेका है। और उस बच्चे को ये जानकर बड़ा दुख हुआ कि उसके कारण उसके गुरु को ये तकलीफ सहनी पड़ी। उसने सोचा कि “लोग नहीं चाहते की मैं गोपालराव महाराज के साथ रहूँ, भविष्य में भी ये लोग मेरे गुरु को परेशान करेंगे इसीलिए उचित यही होगा की मैं तुरंत उनको छोड़ कर कहीं चला जाऊँ।
सूत्र: गुजराती मैगज़ीन “द्वारकामाई” से अनुद्वदित
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Translated and Narrated By Rinki
Transliterated By Supriya
© Sai Teri Leela – Member of SaiYugNetwork.com