Sai Baba’s Guru : Guru Gopalrao Keshavraj Babasaheb Maharaj (Part 3) से अनुवाद
दूसरी तरफ गोपालराव महाराज को भी इस घटना के पीछे का कारण पता चला, जो कि उन अनुयायियों में उस छोटे शिष्य के प्रति ईर्ष्या थी। महाराज को पता थी कि भविष्य में वो लोग फिर से उस बच्चे के प्राण लेने की चेष्टा करेंगे। सर पर जो गहरी चोट लगी थी उसके कारण गोपालराव महाराज जी जान गए थे की उनका अंतिम समय आ चूका है। अब उनके मन में प्रश्न उठ रहा था कि “यदि मेरी मृत्यु हो गई तो मेरे इस शिष्य का क्या होगा?” उन्होंने उस छोटे शिष्य को पास बुला कर कहा “आज मैं तुम्हे अपना सब कुछ दे देना चाहता हूँ।” और अब उन लोगो को बताना होगा कि हम क्या हैं। और उसे आदेश दिया कि जाओ और किसी बाँझ गाय का दूध लेकर आओ।
गुरु के आदेश पते ही वो दौड़ कर एक चरवाहे के पास गया जिसका नाम हुल्ला था, और उसकी एक कपिला नाम की गाय थी जो की बाँझ थी। वो शिष्य उस गाय का दुघ निकलना चाहता था, पर उस चरवाहे ने कहा “ये गाय किसी बछड़े को जन्म नहीं दे सकती इसीलिए मैंने अभी तक इसकी भैंस की तरह ही देख रेख की है।” हल्ला फिर हाथ जोड़ कर गोपालराव महाराज के पास पहुंचा और उनके चरणों में गिर कर कहा “महाराज ये गाय कैसे दूध दे सकती है। इसने 10 वर्षो में कभी दूध नहीं दिया, इसीलिए मैं ख़ुद ये बताने के लिए आपके पास आया हूँ।”
उस चरवाहे की बात सुनकर गोपालराव महाराज ने कहा “तुम बेवकूफ हो जो इस गाय का मूल्यु नहीं जानते। अब जाओ और एक पात्र लेकर आओ, मैं तुम्हे दूध निकलकर दिखता हूँ।” पहले गोपालराव महाराज ने पात्र को हाथ में लिया और दूसरे को गाय की पीठ पर रखा, और तुरंत ही दूध बहने लगा। जितने भी लोग वहां उपस्थित थे वो उस दृश्य को आश्चर्य से देख रहे थे। जिस गाय ने कभी दूध नहीं दिया, उसने उस दिन 3 लीटर दूध दिया।
गोपालराव महाराज फिर उस बच्चे के पास गए और कहा “बेटा अब तुम ये सारा दूध पी लो, इसे पिने के बाद तुम्हे सारा ज्ञान मिल जाएगा। इस 3 लीटर दूध का अर्थ है कर्म, ज्ञान और भक्ति।” बच्चे ने सारा दूध पी लिया। गोपालराव महाराज ने बच्चे को गले लगा कर कहा “तुम पिछले जन्म के कबीर हो ये कभी मत भूलना। तुम्हारे पिछले जन्म की स्त्री को मैंने विनय को सौंपा था ताकि तुम्हारे बच्चो की देखभाल हो सके। पर इस जन्म में तुम्हे ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ेगा। पिछले जन्म में तुमने काफी भजन गाए हैं, इसिलए इस जन्म में तुम्हे मौन व्रत धारण करना पड़ेगा। और एक जगह रहकर तुम्हे आस-पास के लोगो का भला करना होगा।” इस प्रकार उपदेश देने के बाद उन्होंने अपने सर का कपडा निकला जो उनके घाव पर बंधा हुआ था और उस बच्चे के सर पर बांध दिया जैसे फ़क़ीर बांधते हैं। और उन दोनों ने सेलु के लिए प्रस्थान किया।
जो उनके सर पर चोट लगी थी उसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। सही दिनांक नही पता, मगर दासगणू जी की पुस्तक के अनुसार वह मगसर के महीने का ग्यारवा दिन था (हिन्दू पंचांग के अनुसार)।” और ये भी कहा जाता है की बाबा उस समय 20 साल के थे।
सेलु में गोपालराव महाराज जी की समाधी बना दी गई। और उसके ऊपर वेंकटेश भगवन की मूर्ति रखी गई। एक पीपल का वृक्ष भी उस समाधी के पास उगाया गया। उनके कई सरे भक्त समाधी के दर्शन के लिए आया करते हैं, विशेषकर शुक्रवार को। गोपालराव महाराज की सातवीं पीढ़ी अब सेलु में ही रहती है और वे लोग वहीँ पर हर साल बड़े मेले का आयोजन करते हैं।
उस बच्चे को उसके गुरु की मृत्यु होने पर काफी सदमा लगा । वही बच्चा भविष्य में एक महान संत बन गया जो कि साई बाबा के नाम से विख्यात हुए। उनके मन में पछतावा था कि उनके गुरु की मृत्यु उनेक कारण हुई है। अब हम समझ सकते हैं कि उन्होंने किस कारण किसी को भी अपने गुरु के बारे में नहीं बताया।
सूत्र : गुजरती मैगज़ीन “द्वारकामाई” से अनुद्वदित
इस कहानी का ऑडियो सुनें