धारा खेरदिया कहती हैं:
ये तो हम सभी को पता है कि साई बाबा अपने भक्तो से कितना स्नेह रखते हैं और उनकी कितनी चिंता करते हैं। बाबा हमेशा अपने भक्तो के अच्छे और बुरे समय में उनके साथ रहते हैं, पर हर किसी को अपने कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है। आगे की घटना इन दोनों बातो को स्पष्ट करेगी।
मेरी एक करीब सहेली जो की साई बाबा की परम भक्त थी उन्होंने अपनी एक साल की बेटी को खो दिया। उनकी बेटी उनके पिता जी के घर पर थी और उनकी माँ उसे संभाला करती थीं। गलती से उस बच्ची ने केरोसिन पी लिया और उसकी मृत्यु हो गई।
उस भक्त माँ की काफी सदमा लगा और उसने खाना पीना छोड़ दिया। वो साई जी से काफी नाराज़ हो गई क्यूंकि उन्हें लगा कि बाबा ने उनसे उनकी बेटी छीन ली। इसी कारण उन्होंने बाब की भक्ति करना छोड़ दी और वो सोचने लगी कि “मेने कभी किसी का बुरा नहीं किया, और बाबा भी हमेशा मेरे साथ ही थे तो फिर मेरे साथ ऐसा क्युँ हुआ”।
तीन दिन के बाद उनके पिता के घर एक फ़क़ीर आया और उसने उस महिला भक्त से बात करने की इच्छा जताई। पहले तो उनके भाई ने कहा कि वो किसी से मिलना नहीं चाहती, पर वो फ़क़ीर बहुत आग्रह कर रहे थे। बाहर की आवाज़ सुन कर वो भी बाहर आ गइ। उस भक्त को देख कर फ़क़ीर ने सांत्वना देते हुआ कहा कि एक वर्ष के बाद ही वो एक बेटे को जन्म देंगी। और वैसा ही हुआ, पर उन्हें तो बेटी की इच्छा थी और वो इच्छा भी पूरी हुई। जब उन्हें बेटी हुई तो उनको ये देख कर आश्चर्य हुआ कि उनकी बेटी की शकल बिलकुल पहली बेटी से मिलती है। और इस प्रकार उन्हें उनकी बेटी वापिस मिल गई।
ये तो बिलकुल स्पष्ट है की जो फ़क़ीर उनके घर आया था वो और को नहीं साई बाबा ही थे।
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