Devotee Experience – Bhushan And His Father से अनुवाद
हेतल जी,
साईं राम
मैं अपने जीवन का एक उच्चतम अनुभव भेज रहा हूँ। साईं कृपा का अविश्वसनीय अनुभव !!! वर्षा ऋतु अगस्त 2006 का समय था। मैंने उन महान बाबा को सजीव देखा। मेरे पिता 1993 से ह्रदय के मरीज हैं। उनकी अप्रैल 2003 में अहमदाबाद में बाय-पास सर्जरी हुई। उन्हें साईं नाथ की कृपा से नया जीवन मिला। (सारे विवरण बहुत ही लंबे, रोचक और आश्चर्यजनक हैं, किन्तु संकलित करने में थोडा समय लगेगा। कृपया हेतल जी के ब्लॉग पर बने रहें)।
अगस्त 2006 तक सही देखभाल, सावधानी और दवाइयों के कारण उनकी जिंदगी अपेक्षाकृत स्थिर चल रही थी। एक शाम, जब मैं ऑफिस से आया तो मैंने उन्हें असहज पाया। शाम के 6.30 बजे होंगे। मैंने उनसे पूछा कि डॉक्टर के पास चेक-अप के लिए चलें। लेकिन वे अलग तरह के व्यक्ति हैं जो हमेशा दूसरों के बारे में ज्यादा सोचते हैं। तो उन्होंने सोचा कि “मेरे बेटे को क्यों परेशान करूँ, अभी तो ऑफिस से काम ख़त्म करके आया है” इसीलिए उन्होंने थोड़ा खाना खाया दवा ली और फिर नीचे ज़मीन पर सो गये| मुझे थोडा अजीब लगा और मैं आने वाले कड़े संघर्ष के लिए मानसिक रूप से तैयार होने लगा (साईं बाबा की कृपा से अब इतनी क्षमता आ गई है)।
रात तक उनकी दशा नियन्त्रण में थी, लेकिन फिर धीरे-धीरे ख़राब होने लगी| वे बुरी तरह से हिल रहे थे, और सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। दशा बिलकुल हार्ट-आटेक (हृदयाघात) की तरह थी। मैंने तुरंत हॉस्पिटल ले जाने का निर्णय लिया और कहा साईं नाथ फिरसे रक्षा करना। फिर हम 12.15 पर रात को हॉस्पिटल पहुंचे।
स्थिति और ख़राब हो रही थी, असल परेशानी तो हॉस्पिटल में शुरू हुई। उन्होंने पिताजी की स्थिति का संक्षिप्त विवरण पूछा और दवाइयों की जानकारी ली। इसी बीच, पिताजी का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था। बी.पी. कम था। नसे (स्पंदन) कम हो रही थी। स्थिति बहुत नाज़ुक थी, सांस न चलने और बहुत ज्यादा घबराहट से जीवन का अंत समीप लग रहा था!!!! डॉक्टर अपनी पूरी कोशिश कर रहे थे लेकिन जीवन की अवधि का प्रश्न था| अचानक हॉस्पिटल का एक व्यक्ति मेरे पास आया और बोला कि कुछ दवाइयाँ और इंजेक्शन तुरंत चाहिए। हॉस्पिटल में वे उपलब्ध नहीं हैं| देखिये बाबा की परीक्षा| तब 12.45 बज रहे थे, मैं तुरंत भागा। सभी दुकानें बंद थी| 24 घंटे सेवा की दुकान भी बंद थी| मैं हॉस्पिटल से 6 किमी दूर बारिश में गया और एक-एक कर सभी दवाइयां लेकर आया|
लेकिन।।।।
एक चीज़ कम थी| एक इंजेक्शन कहीं भी नहीं मिला| जब मैंने पता किया कि उसकी उपयोगिता क्या है| तब मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई जब पता चला कि वही जीवन दायी इंजेक्शन है|
अब आप ही समय की कल्पना कीजिये सुबह के 3.15 बजे (मुझे अच्छी तरह याद है और मैं भूल भी कैसे सकता हूँ??!!), बारिश बड़ी जोरों से हो रही थी, पूरे गीले तर कपड़े, गीले कागज़ और चंद रुपये, काली अंधियारी और सोई हुई रात, जब अधिकतर सभी रात की दुकानें भी बंद हो चुकी थी और वह इंजेक्शन कहीं भी उपलब्ध नहीं हुआ और उससे ही जान बच सकती थी| यह एक कठिन परीक्षा थी|
हमारे विपरित की शक्ति कभी भी हमारे पीछे खड़ी शक्ति से ज्यादा बलवान नहीं हो सकती, साईं पर पूर्ण विश्वास रखो। वे कभी भी इतनी समस्या नही देते जितनी हम झेल न सकें! साईं बाबा महान हैं|
मैं कंफ़ियूज (किंकर्तव्यविमूढ़) होकर इधर से उधर घूम रहा था मुहँ पर एक ही प्रार्थना थी… साईं रहम करो… साईं मदद करो… साईं रक्षा करो…
मैं सड़क के किनारे पिताजी की हालत पूछने के लिए रुका। पता चला कि हालत वेसी ही है और वह दवाइयाँ और इंजेक्शन जल्दी चाहिए| लगभग 3.35 बजे, मैं बिलकुल ही हताश, निराश और रोने की हालत में था, एक व्यक्ति बंद दुकान से मेरे पास आया। उसने चेहरे और शरीर पर कम्बल ओढ़ रखा था और बारिश से बचने के लिए प्लास्टिक या शायद लोगों की निगाहों से बचने के लिए???!!!
उसने मुझसे पूछा “क्या हुआ? कुछ परेशान हो बेटे??” “मैंने तुरंत कहा हाँ, पिताजी बहुत बीमार हैं और एक इंजेक्शन नहीं मिल रहा है, जो उनका जीवन बचा सकती है !!!” (मुझे उन्हें कुछ बताने की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि मैं तो उन्हें पहचानता भी नहीं था, फिर भी मैंने पूरे जवाब दिए क्योंकि सब कुछ उनके द्वारा ही रचित था) उन्होंने धीरे से पूछा “तुम भाईलाल हॉस्पिटल गये हो? जाओ वहाँ मिल जायेगा” (बताइये कौन ऐसे बताता है?? कौन??) (भाईलाल अमिन हॉस्पिटल बड़ोदा गुजरात का प्रसिद्ध हॉस्पिटल है)।
मैं उस समय बहुत ही ज्यादा तनाव और चिंता में था, इसीलिए मैंने उनसे कुछ भी नहीं पूछा और भाईलाल अमिन हॉस्पिटल की दवाई दुकान की ओर भागा। आज तक मैं अपनी गलती और दुर्भाग्य पर अपना सर पीट रहा हूँ कि मैं उन महान बाबा को पहचान क्यों नहीं पाया| मुझे वो दवाई उस हॉस्पिटल में मिल गई और एक और चमत्कारिक बात पता चली कि वह आखरी इंजेक्शन बचा था और वह भी एक मरीज़ के कमरे से वापस किया गया था क्योंकि उसे उसकी आवश्यकता नहीं थी। वह ठीक हो गया था और उसने सोचा कि मैं खुद के पास क्यों रखूँ जब ज़रूरत ही नहीं है?? (उसकी कीमत 4800 रु.थी) और देखिये उसको यह विचार तब आया जब वह शौचालय जाने के लिए उठा|
उसने अपने बेटे को उस इंजेक्शन को वापस करने के लिए मेडिकल स्टोर भेजा, 3.35 बजे!!! यह वही वक्त था जब मैं उनके साथ था, वे कौन थे?? किसने ये सब प्रबंध किया?? कैसे??? कोई उत्तर नहीं है|
मैं उस इंजेक्शन को पाकर बोहुत खुश और आशान्वित था। ये सारी सच्चाई और घटनाएँ मेरे दिमाग में 2 दिन बाद आई| मैं हॉस्पिटल पहुंचा और नर्स को इंजेक्शन दे दिया| उपचार और निरीक्षण उच्च स्तर पर जारी था| बहुत ज्यादा संघर्ष जारी था| मैं वहां साईंनाम के साथ उपस्थित था। मैंने उनके माथे और छाती पर विभूति लगाई। उनके सिरहाने बाबा की फोटो रखी| वे अर्ध-सुप्तावस्था में ऑक्सीजन मास्क और कई ट्यूब और वायर के साथ थे। सारी रात के संघर्ष के बाद, बीपी और नव्ज़ ऊपर बढ़ा। स्थिति सुधरी। प्रमुख डॉक्टर ने 72 घंटे का समय दिया| उपचार चलता रहा| वह काली बारिश की रात ख़त्म हुई| आशा और विश्वास का सूर्योदय हुआ|
तीन दिन के बाद भी, डॉक्टर यह नहीं कह रहे थे की वो ठीक है| उन्हें 50% ही बचना की सम्भावना लग रही थी। चौथे दिन की रिपोर्ट डॉक्टर ने किडनी में असामान्यता पाई। उनका क्रिएटिनिन लगातार बढ़ रहा था| इसे स्वस्थ किडनी प्रचालन के लिए 0.5 से 1.7 के बीच होना चाहिए। सीरम सोडियम और सीरम पोटैशियम भी असामान्य थे। जो कि पिछली रिपोर्ट में 3.7 था। इसलिए डॉक्टर परेशान थे और वे हमें सभी प्रकार की स्थितियों के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने के लिए कह रहे थे| उनके अनुसार डायलिसिस ही एकमात्र विकल्प था लेकिन उनके निम्न बीपी और कमज़ोर ह्रदय के कारण नहीं किया जा सकता था। तो फिर पांच दिन के संघर्ष के बाद वही अँधियारा हमारी आँखों के सामने था!!!
पांचवे दिन, हमने एक नेफ्रोलोजिस्ट से किडनी ठीक करने के लिए संपर्क किया। एक कार्डियोवैस्कुलर सर्जन और कार्डियोलॉजिस्ट (दोनो हिर्दय के डाक्टर) भी उनसे मिले| उनके परीक्षण और परामर्श के बाद उन्होंने कुछ दवाएं बदली और हमें आशा और शुभकामनाएं दीं। मैं साईं के सामने बहुत रोया, और बहुत प्रार्थना की| उनसे यह भी विनती की कि मेरे पिताजी की जगह मुझे ले जाएँ और आखिर, मैंने वचन दिया कि “मैं अपने पिताजी के साथ आपकी समाधि पर आऊंगा, महान समाधि मंदिर, शिर्डी!!!”
हमे तो ईश्वर पर विश्वास तो एक वर्ष के बालक की तरह होना चाहिए: जो कि ऊपर हवा में उछालने पर हँसता है, क्योंकि उसे पता होता है कि आप उसे फिर पकड़ लोगे| और तभी चमत्कार हुआ| अगले दिन की रिपोर्ट आई। उससे पता चला कि क्रिएटिनिन धीरे धीरे कम हो रहा है!!! (जबकि वह पहले बढ़ रहा था) दो और दिनों की 2-3 रिपोर्ट्स आईं। वह सामान्य स्तर तक आ गया!!!
डॉक्टर भी हैरान रह गये और जीवन में साईं की उपस्थिति पर सहमत हुए
फिर सब कुछ धीरे धीरे सामान्य हो गया| यह ग्यारह दिनों का महासंग्राम था|
साईं पर विश्वास रखिये
हम 25 दिसम्बर 2006 को शिर्डी गये| वहाँ भी मैंने सद्गुरु साईं की उपस्थिति और दिव्यता महसूस की| वहां भी हमें चमत्कार मिले| वे भी हेतल जी के ब्लॉग पर आपको अवश्य मिलेंगे| कृपया निरंतर पढ़ते रहें| जय साईं नाथ। इन भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए शब्द ही नहीं हैं, फिर भी मैंने पूरी कोशिश की!!! बाबा की लीला को कोई शब्दों में कैसे बांध सकता है!!!
[line]
इस कहानी का ऑडियो सुनें
[line]