हमारे ब्लॉग की 10 वीं वर्षगांठ के अवसर पर हमारे पास आप सभी के साथ बाँटने के लिए बहुत बढ़िया चीज़ है और हम ये यकीन दिलाते हैं कि इसे पढ़ने के बाद आपके चेहरे पर बड़ी मुस्कुराहट आजाएगी और ‘मेरे साईं’ (अबीर सूफी जी) के प्रति सम्मान और प्यार और भी बढ़ जाएगा।
जी हा, किसी ब्लॉग नेटवर्क पर पहली बार, हमारे अपने साई जो हमारे साथ बात करेंगे और अपने अनुभव को साझा करेंगे। मिलिए अबीर सूफिजी से , जो छोटे पर्दे पर साईं का किरदार निभाते है, जो हमें हंसाते हैं, रुलाते हैं और हमे ख़ुशी से उछलने पर मजबूर करते है जब वह शिर्डी में सब कुछ ठीक करते है और उनकी विभिन्न लीलाएं लिखित, तस्वीर चित्र और वीडियो के रूप में दिखाए जाते हैं।
जब हम पहली बार अबीर सूफिजी से मिले तो वह शांत व्यक्तित्व के साथ एक बहुत ही अच्छे व्यक्ति लगे। वह सहजता से, मेरे साथ, मेरे माता-पिता, मेरे बेटे के साथ बात कर रहे थे और सभी आयु के वर्गों से संबंधित हो थे और अपने दरबार यानि (नाएगाँव के सीरियल सेट) में बोहुत ही सहजता से हम सभी को अपने बारे में बताने के लिए तय्यार थे। वैसे वह हमारे बे-मतलब सवालों के जवाब देने के लिए भी तैयार थे और इंटरव्यू के लिए उत्साहित भी लगे । मैंने इंटरव्यू के लिए अपनी शर्तों को रखा और मैंने कहा, “मैं बाबा के पोशाक में इंटरव्यू लेना चाहती हूं”, उन्होंने सिर हिलाकर हाँ कहा , मैंने कहा, “हम एक साथ फेसबुक पर लाइव होंगे” उन्होंने फिर से सिर हिलाया। मुझे ऐसा बिलकुल नहीं लगा कि मैं एक ऐसे अभिनेता से बात कर रही थी जो एक ऐसे समुदाय से संबंधित थे जहां पर अभिनेताएँ अपने नखरे दिखने के लिए प्रसिद्ध हैं। वह हम में से ही एक प्रतीत हो रहे थे, हमारे साथ का आनंद ले रहे थे और हमारे साथ अच्छे पोझ लेकर तस्वीरे और सेल्फिस खिचवा रहे थे। वह मोटर साइकिल पर एक सुपर हीरो की तरह अपने सिर को ढकते हुए हेलमेट पहने थे, डेनिम जैकेट और जींस में काफी सुंदर से कपड़े पहने हुए सेट्स में आए। उनकी मुस्कान हमारे दिल को लुभा रही थी और हम सभी उनपर बोहुत मोहित हुए। उनको शूटिंग के लिए जाने की इच्छा नहीं हो रही थी, क्योंकि वह हमारे साथ हर क्षण का आनंद ले रहे थे, मैंने उन्हें अपने प्रोडक्शन टीम के कर्मियों से अनुरोध करते हुए सुना की , “2 मिनट दे दे यार” जबकि वह व्यक्ति शूटिंग के लिए तैयार नहीं होने के लिए उन पर घूर रहा था|
ऐसा था उनका व्यक्तित्व और मुझे यकीन था कि इंटरव्यू बहुत अच्छा होगा। हालांकि मेरी चिंता तब तक खत्म नहीं हुई जब तक हमने इंटरव्यू समाप्त नहीं किया। कृपया कल की पोस्ट “द मेकिंग – मेरे साईं के साथ इंटरव्यू ” अबीर सुफी ” जहां मैं शुरू से सब कुछ आप सभी को बताउंगी की हम वहा तक (“मीरे साई” के सेट पर) कैसे पोहचे ।
‘मेरे साईं’ के प्रसिद्ध अबीर सूफि जी का इंटरव्यू
‘हमारे भगवान साईं’ को धन्यवाद करते हुए मैंने ‘मेरे साईं’ श्री अबीर सूफी जी का इंटरव्यू शुरू किया। मैंने उन्हें ब्लॉग से परिचित कराया और यह बताया की किस प्रकार हमारे भगवान बाबा ने उनके साथ इंटरव्यू के विचार को हमारे मन में डाला। कौनसी लीलाए बाबा ने दिखाइ और यह कैसे संभव हुआ (यह कल की पोस्ट में साझा किया जाएगा)
हेतल पाटिल रावत : हमारे पाठक आपको जानना चाहते हैं और आप अपने टी वी व्यक्तित्व के अलावा एक व्यक्ति के रूप में कैसे हैं और आपकी यात्रा कैसे शुरू हुई?
अबीर सुफी जी: वैसे मैं अभिनेता बनने से पहले एक वकील था मेरा असली नाम वैभव राजेश सारस्वत है मैंने अपने गुरु से अभिनय सिखा जो मुस्लिम है और इसलिए मैंने वर्ष 2012 में “मुस्लिम नाम – अबीर सूफी” ये अपनाया। यह नाम उनको समर्पित है। अब हर कोई मुझे अबीर के रूप में जानता है| मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ खास किया है , यह सब बाबा की कृपा है (आशीर्वाद) जो हर चीज को विशेष बनाता है (मुस्कुराते हुए)
जून 2016 मैं अपनी माँ के साथ शिरडी गया था, वह एक साई भक्त है। मंदिर के बाहर “मुख दर्शन” के खिडकी से (जहां से आप बाबा के सुंदर चेहरे को देख सकते हैं) मैंने अपने हाथ जोड़े और उनसे कहा, “बाबा मुझे एक सेलिब्रिटी बना दो “। कुल मिलाकर 1000 लोगों के ऑडिशन के बाद, 300 लुक टेस्ट हुए , मुझे मई 2017 में साईं बाबा के किरदार के लिए चुना गया। सेट पर सभी मुझे कहते है , ‘ये तो शिर्डी में तय हुआ था’ (यह किरदार हमारे बाबा द्वारा शिरडी में ही चुना गया था)। हमारे शोधकर्ता पवार काका कहते हैं, “आप नहीं जानते कि आपको क्या मिला है” और मैं कहता हूं “मुझे पता है कि मुझे क्या मिला.. उनका आशीर्वाद” इस तरह से ये शुरू हुआ और बाकि तो इतिहास है|
हेतल पाटिल रावत: भगवान साईं बाबा एक अद्वितीय व्यक्तित्व के गुरु है आपने अपने आप को कैसे इस भूमिका के अनुकूल(adapt) बनाया और आपने क्या अनुकूलित किया?
अबीर सुफी जी: बाबा के शांत स्वाभाव को समझने और धारण करने के लिए मैंने कुछ ध्यान और प्राणायाम करना शुरू किया । मैं शिर्डी भी गया और उनसे कहा कि अपने भक्तों के लिए आकर इस भूमिका के लिए मेरी मदद करें। मैंने उनसे कहा था, आप मुझे अपना सिर्फ 10% अनुग्रह दे, उसी में ही ये धारावाहिक चमत्कार करेगा। जब मैं अभिनय करता हूं मुझे लगता है कि, यहा बाबा है और मैं नहीं।
इस पर मैंने कहा था कि उनके 10% के साथ बाबा ने अपना 100% भी दिया है जो कुलमिलाकर 110% हुआ और वह भी इससे सहमत हुए ।
हेतल पाटिल रावत: वर्तमान में आप ही सभी के लिए बाबा के जीवित स्वरुप है, जब से आपको चुना गया है तब से लेकर अब तक क्या आपको कभी ऐसा लगा है की बाबा आपके साथ हैं, क्या आपने उनकी उपस्थिति कभी महसूस की है?
अबीर सुफी जी: बाबा ने मुझे कई बार उनकी मौजूदगी महसूस कराई है। हम एक बार 2012 के आसपास दोस्तों के साथ शिरडी गए थे और मैं हमेशा अपने दोस्तों से कहता था कि अगर हम एक आध्यात्मिक यात्रा के लिए जा रहे हैं तो हम शराब या धूम्रपान नहीं करेंगे । मेरे सभी दोस्त इससे सहमत हुए और हम शिर्डी गए
एक और बार वर्ष 2016 को, मैं अपनी मां को शिर्डी लकर गया। मेरी मां वास्तव में एक जीवित संत और बाबा की भक्त (मुस्कुराते हुए) है। उनकी शिक्षा संस्कृत में हुई है , इसलिए हमे बचपन से ही वह ‘संस्कार’ मिले हैं। इसके अलावा हम एक ऐसे इलाके में रहते थे जहां हिंदू और मुस्लिम बहुत ही प्यार और सम्मान से एक दुसरे के साथ रहते थे। इस तरह मुझे उनकी भाषा और इस्लामिक उच्चारण प्राप्त हुआ। 2012 में बाबा ने मुझे अपना नाम अबीर सुफी अपनाने दिया, जो न तो मुस्लिम नाम है और न ही हिंदू नाम है। यह फिर से उनकी लीला ही थी और मुझे 2017 में यह भूमिका दी।
उस वक़्त जब मैं मेरी माँ के साथ शिर्डी गया था , तब माँ शनी शिंगानपुर जाना नहीं चाहती थी, तब मैंने कहा कि हमें जाना चाहिए और हम चले गए। घाटों (पहाड़ी सड़कों) पर हमारी गाड़ी चढ़ाई नहीं कर पा रही थी और पर्याप्त ईंधन ना होने के कारन गाडी धीमी पड़ रही थी। अंधेरा भी हो रहा था और हम चिंतित थे। माँ ने कहा चिंता मत करो , ‘बाबा कुछ करेंगे ‘ और बाबा ने किया! वही करीब में हुंडाई कार शोरूम था लेकिन मालिक वहां नहीं था। उन्होंने उसे बुलाया और वह स्वयं आया। शायद बाबा ने उन्हें अंदेशा दिया होगा| उन्होंने हमारी मदद की और हम अंत में जा सके लेकिन मुंबई पहुंचने में काफी देर हुई । उसी दिन हमें सहारा स्टार में अमन वर्मा के विवाह के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि शादी को स्थगित कर दिया गया क्योंकि उनके पिता का निधन हो गया था।
ऑडिशन के लिए भी मुझे एक बहुत ही प्रसिद्ध कास्टिंग डायरेक्टर नेहा सिंघानिया ने बुलाया था। शुरू में मैंने यह कहकर इनकार कर दिया कि मुझे दाढ़ी में होना पड़ेगा, जो मेरे पास स्वाभाविक रूप से नहीं है और मैं एक डुप्लिकेट दाढ़ी का उपयोग करने में संकोच करता हूं और इसलिए मैं भूमिका नहीं करना चाहता। लेकिन उन्होंने मुझे फिर से बुलाया और तब मैं अन्फिनिष्ड नामक फिल्म के लिए शूटिंग कर रहा था, मेरी उसमें मुख्य भूमिका थी । भगवान की कृपा से उसे लाखों दर्शको ने देखा| उसके बाद मैं ऑडिशन के लिए आया और लगातार तीन राउंड में क्वालिफाइड हुआ और अंत में मुझे चुना गया। फिर समस्या यह थी कि मुझे ठीक से दाढ़ी नहीं आती । मेरे दोस्त ने कहा कि तेल लगाओ और इसके लिए कुछ गोलियां भी खायी, लेकिन हमेशा नहीं| अंततः बाबा की दाढ़ी के जैसी एक समान आकार में एक प्राकृतिक रूप से दाढ़ी आने लगी (हंसते हुए) । उनकी सभी उपस्थिति और लीला भूमिका भी पहले से ही तय की हुई थी और यह मेरे लिए था!
फिर गुरुपौर्निमा आया ! उस समय शिर्डी में लगभग 5 लाख भक्त थे। मेरे दोस्त ने कहा कि निर्माता को फोन करने के लिए कहो तो हम दर्शन के लिए आसानी से जा सकेंगे । मैंने तय किया था कि मैं एक साधारण भक्त की तरह लंबे मार्ग से जाऊँगा। हमने ऐसा किया और मैंने बाबा से कहा कि मुझे मेरे दर्शकों का प्यार दिलाइये ! यह आपकी भूमिका है और कृपया सुनिश्चित करें कि दर्शक मुझे प्यार करे|
जो भी मैंने उनसे माँगा उन्होंने मुझे दिया । एक घर, एक सेलिब्रिटी का रुतबा , मेरे दर्शकों से प्यार! यह उनकी उपस्थिति के अलावा और कुछ भी नहीं है|
हेतल पाटिल रावत: जब आप कहते हैं कि “अल्लाह मलिक”, यह हमारे दिलों को छु जाता है, क्या आपके साथ भी ऐसा होता है और आपने इसे कैसे अभ्यास किया?
अबीर सुफी जी: – मैंने कई महान अभिनेताओं के काम पर ध्यान दिया है जिन्होंने बाबा का किरदार निभाया है। जैकी श्रॉफ साहब, नागार्जुन साहब और मुकुल नाग जी पर मैं किसी की भी नक़ल नहीं करना चाहता था। कई तरीको से “अल्लाह मालिक” कहने की कोशिश की और अंततः कुछ इस तरह से वह शब्द निकल रहे है जो दर्शकों को बोहुत पसंद आया। यहां तक कि मैं कहानी के अनुसार जहा भी आवश्यक हो तब बोल देता हु। यह विशुद्ध रूप से बाबा का आशीर्वाद हैं| मैंने बाबा से 10% माँगा था, लेकिन उन्होंने मुझे उससे कई अधिक दिया!
मैं उनसे और सवाल नहीं पुछ पाई क्योंकि समय तेज़ी से बीत रहा था और उनका शूट तैयार था। एक व्यक्ति उनका इंतजार कर रहा था। दिन का दूसरा प्रहार भी शुरू हो चुका था और उस दिन भी डबिंग का आयोजन किया गया था। मैंने जल्दबाजी में इंटरव्यू ख़तम किया और उनसे और दो मिनट देने के लिए अनुरोध किया क्योंकि हम चाहते थे कि वह हमारे नेटवर्क लोगो का उद्घाटन करें। उन्होंने कहा, “लाओ लाओ, जल्दी करो जो भी करना है। एक अभिनेता के रूप में उन्हें अपने शूट शेड्यूल को महत्व देना था और इसके बजाय वह हमारे लोगो(logo) का उद्घाटन करने के लिए उत्सुक थे और हमारे लोगो के साथ अच्छा सा पोसे दिया । मैंने एक सेल्फी के लिए अनुरोध किया, और उन्होंने दिया , पूजा ने भी पूछा, उन्होंने फिर से दिया , हमारी मताएँ उनसे गले लगकर फोटो लेना चाहती थी और उन्होंने वो भी किया, हम सभी उस वातावरण में मगन हो गए थे। यह निश्चित रूप से औपचारिक(formal)बैठक नहीं थी, यह आकस्मिक(casual)थी और इंटरव्यू भी। हमने उनके लिए बाबा का छोटा से उपहार उन्हें भेट किये और उन्होंने इसे प्यार से स्वीकार कर लिया।
साई भक्त बृजेश ने अबीर जी का एक स्केच बनाया था और उसके साथ उदी का पैकेट भी पैक किया था। बृजेश ने उसे हमारे सामने खोलने के लिए अनुरोध किया और उन्होंने ऐसा किया इस अनपैकिंग प्रक्रिया में, उदी पैकेट निचे गिर गया और उन्होंने हमें इसे उठाने के लिए कहा क्योंकि वे इसे उनकी माँ के लिए भेजना चाहते है। ब्रिजेश के इस रचनात्मक भाव ने उनके दिल को छु लिया और उन्होंने कहा कि उन्होंने एक हाथ में स्केच पकड़े हुए और ब्रीजेश के कंधे पर अपना दूसरा हाथ रखकर तस्वीर लेने का अनुरोध किया। सामूहिक तस्वीरे(ग्रुप फोटो), सेल्फिस, चित्र, हाथ मिलाना, बातें , स्तुति, सभी एक साथ चल रहे थे और ऐसा महसूस हुआ की जैसे समय थम सा गया हो। पर जो भी हो उन्हें तो जाना ही था, भारी लेकिन संतुष्ट मन से हमने उन्हें अलविदा कहा फिर से मिलने की इच्छा रखते हुए, और वह बार-बार हमें उनके लिए प्रार्थना करने के लिए कह रहे थे। यद्यपि इंटरव्यू तो एक बहाना ही था, बाबा ने हमें ऐसे व्यक्ति से मिलने का मौका दिया, जो इतने विनम्र और अहंकार रहित है । हम इस अवसर को देने के लिए अबीर जी और साईं नाथ का धन्यवाद करते हैं।