Desire To Go To Shirdi Got Fulfilled से अनुवाद
लंबे अंतराल के बाद, मुझे साईं सत्चरित्र का पारायण करने का अवसर मिला और बाबा की कृपा और इच्छा से मैं आज इसे समाप्त करुँगी। इस पवित्र पुस्तक के साथ बिताये गये क्षण, साईं बाबा की दिव्य उपस्थिति का अनुभव कराते हैं। मेरे कई बार पारायण करने के बाद भी, हर बार कुछ नया ही सीखने को मिलता है। इसमें समाहित आध्यात्मिक ज्ञान इतना व्यापक है कि एक बार के पठन में कई बातें छूट जाती हैं। ऐसा लगता है मानो बाबा चाहते हों कि जितनी ज्यादा संभव हो उतनी बार पाठ करें, जिससे कि वे हर बार अगले पारायण में कुछ नई शिक्षा दे सकें।
इतना ही नहीं, हमें कुछ ऐसे प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है जो हमारे मस्तिष्क में होता है और काफी समय से जिसका हम उत्तर ही नहीं खोज पाते है किन्तु साईं सत्चरित्र का पाठ करते हुए हमें अपनी समस्या का व्यावहारिक उपाय मिल ही जाता है। हमे दैनिक दिनचर्या में किसी न किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता हैं जिसके कारण हम दुखी रहते है, किन्तु यदि हम साईं सत्चरित्र को गहराई से पढ़े तो हमें इन समस्याओ का समाधान मिल सकता हैं। इस पवित्र ग्रंथ से हमारी, साईं बाबा को जीवंत देखने की आकांक्षा पूर्ण होती है क्योंकि बाबा इसी में विद्यमान हैं। अब मैं इस पोस्ट की मुख्य कहानी पर आती हूँ। इसमें वर्णन है की जब बाबा सदेह थे तब उन्होंने किस प्रकार एक गरीब युवक की शिर्डी जाकर बाबा के दर्शन करने की इच्छा को पूरी की और शिर्डी बुलाने के लिए बाबा ने क्या लीला रची।
मुंबई के पास ठाणे जिले में गोपाल गणेश महाजन नामक युवक रहता था और वह खटाऊ मील में सहायक के तौर पर काम करता था। उसे 15 रु. मासिक वेतन मिलता था। कई बार उसकी सेहत ख़राब हो जाती और यही उसकी चिंता का मुख्य कारण था। गोपाल गणेश की माँ की इच्छा थी कि साईं बाबा की कृपा दृष्टि एक बार उनके पुत्र पर पड़ गई, तो उसकी सभी परेशानियों का अंत हो जायेगा। किन्तु यह असंभव लग रहा था क्योंकि गोपाल को बहुत ही कम वेतन मिलता था और उसमें बड़ी कठिनाई से गुजारा हो पाता था।
उन दिनों, मुंबई-शिर्डी यात्रा का कुल खर्च 8-10 रुपये था। शिर्डी में दो वाड़े हुआ करते थे- दीक्षित वाडा और साठे वाडा जहाँ रहना निशुल्क था। श्री काकासाहेब दीक्षित भोजन की व्यवस्था करते थे जो कि वह भी निशुल्क था। इसके अतिरिक्त श्री दादा केलकर के खेत, जो कि साईं बाबा ने उन्हें भेंट दिए थे, उसका प्रयोग निशुल्क भोजन प्रबंध करने के लिए किया जाता था। इसके अलावा दादा केलकर अपने पास से इस कार्य के लिए प्रतिदिन 5 रुपये दिया करते थे। वहां पर एक होटल भी था जहाँ पर मात्र 8 आने देकर शुद्ध घी सहित भोजन प्राप्त किया जा सकता था। हमारे प्रिय साईं बाबा शिर्डी में बैठकर हर दिन लीलाएं रचते रहते थे। इसी से सम्बंधित एक और घटना देखिये। वर्ष 1911 में, रामनवमी त्यौहार के समय शिर्डी में पानी की कमी की समस्या उत्पन्न हुई जिसे बाबा ने अपनी दिव्य शक्तियों से उस समस्या का समाधान केवल उस समय के लिए कर दिया। फिर से समस्या उत्पन्न न हो इसके लिए, बाबा ने शिर्डी के कुँए के पास एक पंप स्थापित करने का दायित्व श्री रामचंद्र तर्खड को दिया।
वर्ष 1913 में, रामनवमी उत्सव के पहले, होली की छुट्टियाँ थीं। रामचंद्र तर्खड ने निश्चय किया कि रामनवमी उत्सव के पहले ही इस छुट्टियों में पानी का पंप फिट करने के लिए मील के दो सहायक को साथ लेके जाया जाये। ताराबाई तर्खड (जो रामचंद्र तर्खड की पत्नी और बाबा की अनन्य भक्त थी) उन्होंने भी निष्चय किया कि वे अपने पति के साथ जाएँगी और त्यौहार शिर्डी में ही मनाएँगी। दूसरी ओर, गणेश गोपाल मन-ही-मन सोच रहे थे कि मैं तो शिर्डी जा नहीं पा रहा हूँ, कम से कम रामचंद्र तर्खड के हाथों फूलमाला और प्रसाद ही बाबा को भेज देता हूँ। इस तरह बाबा का आशीर्वाद मुझे अपने आप ही मिल जायेगा।
उन दिनों, कोपरगाँव पहुँचने के लिए, बोरीबंदर की ट्रेन दादर स्टेशन पर रूकती थी। गोपाल गणेश बाबा को भेंट भिजवाने के लिए हार और प्रसाद लेकर रामचंद्र तर्खड को देने के लिए दादर स्टेशन गए। रामचंद्र तर्खड, गोपाल गणेश से बोले “ओ बालक, तुम शिर्डी चलना चाहते हो? यदि इच्छा हो तो आओ हमारे साथ बैठो। मेरे पास एक अधिक टिकट है, तुम पैसे की चिंता न करो। मैं तुम्हारी माँ को भी सन्देश अभी भिजवा देता हूँ। कुछ चिंता न करो। बाबा की कृपा से सब अच्छा होगा।” और इस प्रकार गोपाल गणेश को अचानक शिर्डी जाने का अवसर मिला जो उसकी बोहुत दिनों से इच्छा थी। इस प्रकार बाबा ने सभी दिशाओं से ऐसे तार खींचे की गोपाल गणेश के ह्रदय में भक्ति का बीजारोपण हो गया और वह आजीवन बाबा का अनन्य भक्त बना रहा। जब बाबा की कृपा किसी पर हो, तो कुछ भी असंभव नहीं है। शिर्डी यात्रा से रामचंद्र तर्खड को क्या लाभ हुआ और बाबा ने क्या गहन सन्देश दिया, यह अगले पोस्ट के लिए रखते हैं।