श्रद्धा और सबुरी – जुड़वाँ बहने

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साई वो नही जो तुझे गम में छोड़ देंगे,

साई वो नही जो तुझसे नाता तोड़ देंगे,

साई तो तेरे वो भगवान हैं, तेरे वे मालिक हैं,

अगर तेरी सांसे बाँध हो,

तो अपनी सांसे जोड़ देंगे

साईं बाबा के गुरु ने अपने शिष्यों से ‘श्रद्धा’ और ‘सबुरी’ नामक दो सिक्के मांगे थे। वह दोनों अलग नहीं, बल्कि एक सिक्के के दो पहलू हैं, यदि कोई एक भी वहां है; तो दूसरे को उपस्थित होना ही पड़ेगा। जिस प्रकार श्रद्धा मजबूत होती है, सबुरी की पहचान भी उसी के अनुसार होती है। सबुरी गुणों की एक खदान है और श्रद्धा सबुरी का जीवन है। यह सोचना संभव नहीं है कि साईं बाबा के भक्ति के पथ पर चलते समय हमें तुरंत ही – आज या कल में ही – फल मिलेंगे।

ऐसा हो सकता है कि हमें तुरंत फल न मिले मगर हमें निराश नहीं होना चाहिए। हमें ध्यान रखना चाहिए कि इत्छित परिणाम ना मिलने से हमारे प्यार और विश्वास में कमी नहीं हो। हमारी भक्ति को मजबूत होना चाहिए ताकि परिणाम प्राप्त करने के लिए हम सही समय का इंतजार कर सकें। जब हमारे मन में ऐसे प्रश्न उठेते हैं कि “मेरी भक्ति में शक्ति नहीं है,” “साईं बाबा मुझे नहीं सुनते हैं” या “मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा है,” तब हम उदास हो जाते हैं और ऐसे हमारी भक्ति कमज़ोर हो जाती है। इसलिए यह अनिवार्य और आवश्यक है कि भक्ति इस तरह की नहीं होनी चाहिए। हमें कठिनाईयो को सकारात्मकता से देखने का अभ्यास करना चाहिए। इसलिए हमें धैर्य रखना चाहिए और इसे अपने जीवन में जगह भी देनी चाहिए।

दुनिया में अच्छे दोस्त बहुत कम मिलेंगे,

जीवन में सुख कम, दुःख ज्यादा मिलेंगे,

जिस मोड़ पे दुनिया आपका साथ छोड़ देगी,

उसी मोड़ पर आपको साईनाथ मिलेंगे

क्या कोई सोच सकता है कि जमीन में बोया जाने वाला बीज एक पेड़ बनकर तुरंत ही फल देगा? बीज जमीन में प्राकृतिक तरह से काम करता है। उसका प्रभाव बाहर नहीं दिखता। प्रभाव देखने के लिए कुछ धैर्य जरूरी है। सूरज की किरणों से समुद्र का पानी भाप बनता है, और यह भाप बादलों में परिवर्तित होती है जो हमें वर्षा देते हैं। लेकिन यह प्रक्रिया कुछ मिनटों में नहीं हो सकती, इसके लिए लंबे समय की आवश्यकता होती है। काफ़ी घटनाएं अदृश्य हैं, लेकिन उनके अपने महत्व हैं। पृथ्वी में जो भूकंप आता है वह कुछ मिनटों या एक दिन की घटना नहीं है, यह प्रक्रिया पृथ्वी के भीतर काफी लंबे समय से चलती रहती है। एक बच्चे को जन्म देने के लिए माँ को कितना दर्द सहना पड़ता है। इसके लिए उसे बहुत धैर्य और साहस रखने की आवश्यकता होती है।

यदि भक्ति के रास्ते पर चलते समय हमें मन वांछित उत्तर नहीं मिलते, तो आम तौर पर हम निराश हो जाते हैं या हम विश्वास करना छोड़ देते हैं। इस स्थिति पर काबू पाने के लिए धैर्य रखना बहुत जरूरी है। भक्तों को उनकी भक्ति से कुछ पाने का विचार छोड़न देना चाहिए; इसके बजाय उन्हें आध्यात्मिकता के रास्ते में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इसे फिर से धैर्य की आवश्यकता है। साईं बाबा कहते थे की, “यदि व्यक्ति कोई कर्म करता है, तो उसे एक दिन उसका परिणाम ज़रूर मिलेगा”। “सबुरी” भक्ति के रास्ते पर सफल होने के लिए एक कठिन परीक्षा है। यह परीक्षा केवल गुरु द्वारा ही ली जा सकती है। जब एक आम आदमी जब मिट्टी का बर्तन खरीदता है जो कि बहुत ही कम मूल्य जैसे कि 20-25 रुपये का है, फिर भी वह बर्तन की बार-बार जांच करने के बाद उसके पैसे देता है। इसी तरह भक्ति के मार्ग में भक्ति बाहरी रूप से या सिर्फ दिखावे के लिए नहीं होनी चाहिए, इसे हमारे भीतर से आना चाहिए और हमें प्रोत्साहित करना चाहिए|

किसी को खिल के हंसाना,

इससे बड़ी इबादत नही,

किसी को शिरडी खली हाथ लौटाना,

श्री साई की आदत नही

सबुरी की तरह श्रद्धा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, श्रद्धा भक्ति के मार्ग की नींव है और सबुरी उस रास्ते पर चलने के लिए समय है। भक्ति का मार्ग अपने कर्मों का व्यक्तिगत अनुभव है, भक्ति के रास्ते पर चलते समय स्वयं को ही सभी कार्यों करने पड़ते है। अपने गुरु को आत्मसमर्पण किए बिना कोई कुछ भी नहीं कर सकता। अगर हमें अपने सोने के गहने की मरम्मत करानी है, तो हमें उसे सुनार के हवाले करना पड़ता है यानि गहने को समर्पण करना पड़ता है। वैसे ही जब तक हम अपने गुरु (साईं बाबा) को अपने मस्तिष्क और विचार समर्पित नहीं कर देते, तब तक हमें कोई परिणाम नहीं मिलेगा। अपने गुरु को आत्मसमर्पण करने के बाद सबुरी की आवश्यकता होती है।

पूर्ण भक्ति का फल हमारे गुरु का और भगवान का आशीर्वाद होता है। लेकिन भगवान या गुरु केवल उन पर ही अपना आशीर्वाद देने के लिए उत्सुक होते हैं जिन्हें उन पर पूर्ण विश्वास होता है। अब आशीर्वाद को भरने के लिए, भगवान या गुरु को एक पात्र या बर्तन की आवश्यकता है। जैसे की प्रत्येक खाने की वस्तुओ को रखने के लिए पात्र की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार भगवान या गुरु को भी पात्र की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए जैसे की हम गेहू को बड़े और दूध को छोटे पात्र या बर्तन में रखते है। यदि हमें उसी पात्र में दूसरी खाने की चीज़ रखनी हो तो हमें पहले उस पात्र को खाली करके उसे साफ करना होगा और फिर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

तू ही ब्रह्म, तू ही विष्णु,

तू ही तू है विधाता,

सब की बिगडी बननेवाला

तू ही तू है जीवनदाता

भगवान या गुरु के आशीर्वाद को संग्रहित करने के लिए या आशीर्वादों का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के पास छोटा या बड़ा पात्र होता है। पर कोई भी पात्र खाली नहीं है इसका मतलब यह है कि बर्तन किसी ना किसी चीजों से भरा हुआ है। हमारे अच्छे कर्मों के कारण यदि हम किसी तरह भगवान या गुरु का आशीर्वाद प्राप्त भी करते हैं, ख़ाली पात्र ना होने के कारण इसे पाने के बाद भी हमें लगता है जैसे हमें कुछ नहीं मिला। उदाहरण के लिए, यदि कोई हमारे दरवाजे पर हमें शुद्ध घी मुफ्त देने के लिए आता है, पर हमारे पास कोई भी ख़ाली बर्तन ना हो, तो हमें शुद्ध घी लौटना होगा। यदि हम गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करे भी, तो भी और उस आशीर्वाद को भरने के लिए हमारे पास खली पात्र नहीं होता क्योंकि इसमें बहुत बुरी चीजें होती हैं और हम इसे खाली करने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं।

इसलिए हम आशीर्वाद या लाभ प्राप्त ना मिलने के कारण उदास हो जाते हैं। अब हमें देखना है कि हमारे पास कौन सा खाली बर्तन है। हमारे पास हमारा ‘मन’ और ‘बुद्धि’ हैं – ये दो गुरू के आशीर्वाद रखने के लिए सबसे बड़े पात्र हैं, तो तुरंत उन्हें साफ करें ताकि वे गुरु के आशीर्वाद को इकट्ठा करने के लिए उपयुक्त हों। लेकिन पिछले जन्म के कर्मों और वासना के कारण वे पूरी तरह से भरे हुए हैं। उन्हें साफ करने और उन्हें खाली करने के लिए बहुत समय लगेगा, जैसे कि कोयले के ड्रम को साफ करने के लिए उसे कई बार गर्म करना पड़ता है और इसमें ज्यादा समय लगता है। इस प्रक्रिया का अर्थ है सबुरी। तो चलिए गुरु के आशीर्वाद और अनुग्रह को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा और सबुरी को अपने जीवन की नींव बनाते हैं।

क्यों रखे बाबा से दूरी भक्ति से होती इच्छा पूरी

मन चाहा फल देते है श्रद्धा और सबूरी

सूत्र : साई लीला मैगज़ीन

© Sai Teri LeelaMember of SaiYugNetwork.com

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