आज कल, भक्तों के अनुभव साईं लीला पत्रिका में “Is Baba Living and Helping Now?” (“क्या बाबा जीवित है और मदद कर रहे है?”) इस शीर्षक से प्रकाशित हो रहे हैं। पूरा लेख ज्योति रंजन राउत द्वारा संकलित किया गया है जिसमें प्रत्येक अंक में चार-पाँच अनुभव दिए गए हैं। मैं उनमें से एक को यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ, जो की पुणे में रहने वाले साईं भक्त विश्वनाथ ने लिखा है।
एक बार, टी.वी पर साईं बाबा के जीवन पर आधारित एक धारावाहिक को देखते हुए, मेरी पत्नी ने कहा, “इतने सारे लोगों को साईं के अनुभव मिलते हैं। हमें कोई क्यों नहीं मिलते?” उसके बाद हमें जो अनुभव मिला वह कुछ ऐसा है जिसे हम कभी नहीं भूलेंगे, और फिर कभी नहीं कहेंगे कि “साई हमारे साथ नहीं है”।
1982 में, मुझे अचानक ह्रदय रोग हुआ। जांच करने पर पाया गया की मेरे दिल में एक छोटा सा छेद है, जो मेरे जन्म से ही मौजूद था। डॉक्टर ने निश्चित किया की ऑपरेशन के बजाय पहले गोलियां देकर देखेंगे की ठीक होता है की नहीं। मैंने कुछ दिनों तक तो गोलियां खाई, लेकिन उन गोलियों को खाकर मैं उब गया था इसीलिए मेरे परिवार वालो को बिना बताए मैंने उन्हें खाना बंद कर दिया था।
जून 2004 में, समस्या फिर से उत्पन्न हुई। मैंने एक डॉक्टर से परामर्श किया और उन्होनो बताया की मेरा रक्तचाप बहुत अधिक है और मुझे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए। एंजियोग्राफी से पता चला की मेरे हृदय तक रक्त ले जाने वाली धमनी (artery)में ब्लॉकेज है। एंजियोप्लास्टी की सलाह दी गई थी, लेकिन कुछ समस्याओं के कारण मैं ऐसा नहीं कर पाया।
एक महीने से अधिक समय बाद, एक रात, अगस्त में, मेरे पेट में गंभीर दर्द हुआ। मैंने साईं से प्रार्थना की और कुछ उदी को अपने मुंह में डाल लिया और फिर मैं शांति से सो गया। भोर में, मैंने एक सपना देखा जिसमे लुंगी और कुर्ता पहने एक व्यक्ति था जो किसी के सामने खड़ा था। जब मैंने उनसे पूछा कि वह कौन है, तो वे उठे और मेरी ओर देखाकर मुस्कुराए। मैंने तब बाबा को पहचान लिया। उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और बिना कुछ कहे अदृश्य हो गए।
उस दिन (6 अगस्त, 2004) दोपहर के आसपास, अचानक मेरी हालत खराब होने लगी और मैं बेहोश हो गया। भगवान की कृपा से उस समय मेरा बेटा घर पर था और एक पड़ोसी भी मुझ से बात-चीत करने आये थे। मेरा बेटा बहुत घबरा गया और किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करना चाहिए। उन्होंने अस्पताल के हार्ट ब्रिगेड को फ़ोन किया। मेरा शरीर ठंडा और भारी होने लगा। मेरी पत्नी पूरे मन से भगवानों से प्रार्थना कर रही थी।
हमारे पड़ोसी डॉ. गुजराती को बुलाया गया। उन्होंने मेरा बी.पी. जांचा जो बहुत अधिक था। मेरी गंभीर स्थिति को देखकर उन्होंने तुरंत ही वह प्रक्रियाएँ शुरू की जो दिल का दौरा पड़ने पर किया जाता हैं। उन्होंने मेरी जीभ के नीचे एक गोली रखी और मेरे सीने पर दबाव देने लगे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मेरी धड़कन कुछ सेकंड के लिए रुक गयी थी। अंतिम विकल्प के रूप में, डॉक्टर ने सीधे मेरे सीने के अन्दर एक इंजेक्शन दिया जिसके कारन मुझे थोड़ा होश आया था, लेकिन मेरी छाती में भारीपन के कारन, इंजेक्शन को सीने से निकाला नहीं जा रहा था। उस समय एंबुलेंस भी पोहचा और मुझे तुरंत ही ऑक्सीजन लगाया गया। डॉक्टर ने तब किसी तरह इंजेक्शन को निकाला। जब मुझे अस्पताल ले जाया गया तब मैंने बाबा का चेहरा देखा। मेरा बी.पी. वापस सामान्य हो गया। सभी परीक्षण रिपोर्ट सामान्य आई। मेरे परिवारवाले सभी आश्चर्यचकित थे, क्योंकि घर में मुझे बहुत कष्ट हो रहा था और अब अचानक ही सब ठीक होगया। क्यूंकि, यह सब बाबा की ही कृपा थी।
डॉ गुजराती ने आशंका जताई कि इंजेक्शन की सुई जो उन्होंने मुझे दी थी वह शायद अभी भी मेरे सीने में हो सकती है। उन्होंने अस्पताल में डॉक्टरों को इस बारे में अवगत कराया, लेकिन एक्स-रे में कहीं भी सुई का निशान नहीं मिला। एंजियोप्लास्टी की सलाह दी गयी थी, लेकिन मेरे ह्रदय में छेद और मेरी कमजोरी के कारन मेरे परिवारवाले इस टेस्ट को करवाने के लिए चिंतित थे। अन्य डॉक्टरों से सलाह ली गई, लेकिन उनकी राय अलग थी। अंत में मेरे परिवार ने बाबा पर विश्वास रखते हुए मेरे भाग्य पर छोड़ दिया और एंजियोप्लास्टी करने का फैसला किया।
17 अगस्त, 2004 को ऑपरेशन का दिन था। मेरी पत्नी और बेटी ने बाबा से बहुत प्रार्थना की। मुझे लगभग सुबह के 11 बजे ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया। डॉक्टर ने ऑपरेशन शुरू किया, लेकिन आधे घंटे के बाद ही उन्होंने ऑपरेशन रोक दिया। वह तेज़ी से अपने मोबाइल पर बात करते हुए बाहर निकले। उन्होंने मेरे बेटे को बताया की मेरे सीने में सुई है। एक अन्य डॉक्टर जिन्हें इमरजेंसी के रूप में बुलाया गया था, उन्होंने कहा कि उस सुई के टुकड़े को ऐसे ही छोड़ना खतरनाक होगा इसीलिए बाय-पास सर्जरी की सलाह दी गई। मेरा परिवार फिर से एक विचित्र अवस्था में था। लेकिन, डॉक्टर ने मेरे बेटे को आश्वस्त करते हुए कहा, “भगवान पर भरोसा रखो, और मुझे यकीन है कि तुम्हारे पिता पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे”।
गुरुवार 19 अगस्त को बाय-पास सर्जरी करने का निर्णय लिया गया। पर इससे पहले हमें 1,50,000/ – जमा करवाना था। मेरे रिश्तेदारों ने मेरे बेटे को बिना बताएं ही पैसा इकट्ठा कर जमा किया। यह भी बाबा की ही कृपा थी। मुझे बताया गया था कि यह एक छोटा सा ऑपरेशन है जो मेरी सभी बीमारियों को ठीक कर देगा। ऑपरेशन के पहले ही दिन से मुझे बाबा और स्वामी समर्थ द्वारा आश्वासन मिल रहा था। “I am with you” (मैं तुम्हारे साथ हूँ) स्वामी समर्थ के ये शब्द बार–बार मेरे सामने आ रहे थे और बाबा का उदी भी लगायी गयी थी इसीलिए मैं बिल्कुल निश्चिन्त था।
ऑपरेशन से पहले डॉक्टर ने एक वैकल्पिक मशीन का सुझाव दिया, जो ऑपरेशन के समय को और मेरी परेशानी को कम अर सकती थी, लेकिन वह हैदराबाद में थी और उसे मंगवाने में दो दिन लगते। लेकिन, हम सभी ने पहले ही अपना मन बना लिया था कि ऑपरेशन गुरुवार के दिन ही होगा और इसलिए मेरे बेटे ने उसी दिन ऑपरेशन करवाने का फैसला किया।
ऑपरेशन शुरू होते ही सभी ने मेरे लिए प्रार्थना की। जब ऑपरेशन सफलता पूर्वक समाप्त हो गया और डॉक्टर ने मेरे बेटे को इसकी जानकारी दी, तब जाकर उसने राहत की सांस ली। मेरी छोटी बेटी तुरंत साईं के मंदिर गयी और मेरे डिस्चार्ज मिलते ही मुझे मंदिर ले जाने का संकल्प किया।
26 अगस्त, 2004 को मुझे डिस्चार्ज मिला। घर जाने से पहले मैंने ‘स्वार गेट’ में स्थित साईं बाबा मंदिर का दर्शन किया। मेरे बेटे ने जेजुरी में हमारे परिवार के देवता भगवान खंडोबा और शिर्डी में साईं बाबा के दर्शन किए। उसने संस्थान से चिकित्सा सहायता के लिए भी आवेदन किया था जहा से हमें रु 20,000 /, मिले और सिस्टर निवेदिता बैंक से भी हमें रु 20,000 / -मिले।
इस प्रकार, बाबा ने न केवल मुझे आध्यात्मिक रूप से ही नही, बल्कि आर्थिक रूप से भी सहायता की। तीन महीने बाद जब मैं ठीक हो गया, तब हमने स्वार गेट स्थित साईं बाबा मंदिर में 108 तेल के दीपक जलाए। हमने साईं बाबा को वस्त्र भी अर्पित किए।
साईं बाबा अपनी कृपा सब पर बनायें रखें।
स्रोत: साईं लीला पत्रिका जुलाई-अगस्त 2008 Edition संस्करण (गुरुपूर्णिमा विशेषांक)