साईं भक्त सचिन कहते हैं: बाबाजी हमारे परमपिता हैं। वह हर समय हमारी देखभाल करते है। बिना मांगे भी हमें वह सबकुछ देते है जिसकी हमें आवश्यकता होती है। उनके प्रति मेरा व्यक्तिगत लगाव और प्रेम के कारन वे मेरे परिवार के सदस्य जैसे ही लगते हैं। उनके बिना मेरा परिवार अधूरा है। मेरे जीवन में जो कुछ भी होता है वह सब बाबाजी की ओर जाकर ही समाप्त होता है। वैसे तो मैं पिछले दो साल से बाबाजी को जानता हूं लेकिन वह मेरे जन्म के समय से ही मेरी देखभाल कर रहे हैं और वे हमेशा मेरे साथ थे पर मैं उन्हें कभी देख नहीं पाया। जो भी मैंने उनसे माँगा वो सब कुछ उन्होंने दिया और जो मेरे लिए उचित हो वो ही उन्होंने किया। कभी-कभी मैं बाबाजी से ज़िद्द करके भी कुछ चीज़े मांगता हूँ और जी हां, उन्होंने बिना देर लगाए मुझे वो सब दिया। ऐसी है मेरे बाबाजी की महानता। मुझे अभी भी याद है कि कैसे शिर्डी की मेरी पहली यात्रा बाबाजी द्वारा आयोजित की गई थी।
यह तब की बात है जब मैं अपने माता-पिता के साथ अमृतसर में रहा करता था। मैं अक्सर वाहा पास के साईं मंदिर जाता था। एक बार, मेरे एक दोस्त (वो भी साईं भक्त है) उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके साथ शिरडी जाना चाहूंगा। वे 3 लोग थे। मेरे मन को हमेशा उस पल का इंतजार था। लेकिन, उस समय मेरे माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मैंने अपने माता-पिता से पूछा लेकिन उनका नकारात्मक उत्तर मिला क्योंकि यात्रा के लिए न्यूनतम 2000 रुपये की आवश्यकता थी और उस समय मेरे माता-पिता के लिए वो रकम बहुत ज्यादा था। मेरे माता-पिता ने कहा कि शायद बाबाजी का बुलावा नहीं आया है। जब भी बाबाजी को तुमसे मिलने की इच्छा होगी, वे तुम्हे अवश्य बुलाएँगे। इसलिए बड़े भारी मन से मैंने अपने दोस्त को मना कर दिया| पर अंदर मैं एक बच्चे की तरह रो रहा था। वे एक हफ्ते बाद जाने वाले थे। जब भी मैं मंदिर जाता, तो उन्हें शिरडी यात्रा की व्यवस्था के बारे में बात करते सुनता था | मैं बस उनकी बातें सुनता और बाबाजी की मूर्ति को देखकर रोते हुए मन से बाबाजी को कहता, कि बाबाजी आप मुझे शिरडी क्यों नहीं बुला रहे हैं। आप सबको बुलाते हो, मुझे क्यों नहीं। जैसे-जैसे यात्रा का दिन नजदीक आ रहा था, मेरी हालत और अधिक खराब होती गई। मैं उदास होकर रोता था। मैंने अपने भाई से पैसे मांगे। लेकिन उसने मुझे बताया कि, उसने अभी-अभी अपनी नौकरी में बचत खाते (सेविंग अकाउंट) के लिए आवेदन किया है, जिसे शुरू होने में कुछ दिन लगेंगे और उसे 10 दिन या उसके बाद वेतन मिलेगा।
मेरे भाई के कंपनी में जो भी नए कर्मचारी थे उन सभी को देर से वेतन मिल रही थी। मैं और भी उदास हो गया क्यूंकि मेरे भाई से पूछने का आखिरी विकल्प भी विफल हो गया। अब यात्रा के लिए सिर्फ 2 दिन ही बाकि थे, मैं मंदिर से घर आया, घर पर कोई नहीं था। मैं अपने कमरे का दरवाजा बंद करके बाबाजी के कैलेंडर के पास खड़ा हो गया, जिसकी मैं रोज पूजा करता था। मैं बाबाजी से पूछने लगा कि वह मुझे शिरडी क्यों नहीं बुला रहे हैं और मैंने धीरे-धीरे बाबाजी पर चिल्लाना शुरू कर दिया (बाबाजी मुझे माफ कर दीजिये उस व्यवहार के लिए)। मुझे अब भी वे शब्द याद हैं, मैंने कहा था कि “आप मुझे क्यों नहीं बुलाते बाबा, बाकि सब को बुलाते हो। ये कोइ बात नहीं होती मैं शिरडी आना चहता हूँ, तो आप आने क्यों नहीं देते मुझे। आप तो उनको भी अपने पास बुला लेते हो जिन्होंने शिरडी या आपका नाम भी कभी नहीं सुना| फिर मुझे क्यों नहीं बुलाते”| मैं निराशा भरी आवाज़ में और रोते हुए ऐसा कहता रहा। ऐसा करीब आधे घंटे तक चला।
फिर मैं शाम को मंदिर गया। शिरडी न जाकर बाबाजी से ना मिलने का विचार असहनीय हो रहा था। जब मैं घर वापस आया, तो मेरा भाई भी 10 मिनट के बाद आया। घर में प्रवेश करने के बाद उन्होंने जो पहले शब्द कहे थे, उससे मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कहा, “तू शिरडी जाना चाहता है, ले 2000 रुए और जा बाबा के पास।” यह सुनकर मेरे रोमांच पर कोई सीमा नहीं रही। मैंने कूद कर अपने भाई को गले से लगा लिया। फिर से बाबाजी का एक चमत्कार हुआ !! मेरे माता-पिता भी खुश हो गए क्योंकि वे भी बुरा महसूस कर रहे थे की मैं शिरडी नहीं जा पा रहा था, पर अब सब खुश थे|
आखिरकार मैंने अपना टिकट बुक किया और बाबाजी से मिलने शिरडी गया। और एक अजीब बात भी हुई, मेरे भाई की कंपनी में सभी को वेतन देर से मिली केवल मेरे भाई को ही उसकी अपेक्षा से 10 दिन पहले ही वेतन मिल गयी । यह सब बाबाजी की कृपा से हुआ कि जब शाम को मैं बाबाजी पर चिल्ला रहा था और उनसे प्रार्थना कर रहा था, उसी समय मेरे भाई के खाते में भी उसका वेतन जमा हो गया और इसी वेतन से मुझे 2000 रु मिले जिसके कारन मैं शिरडी की यात्रा कर पाया और अपने प्यारे बाबाजी से मिल पाया। महान है मेरे गुरु और महान है उनकी लीला जिसके कारन वे अपने भक्तों को इस दिव्य बंधन में बांधे रखते हैं।
ॐ साई राम।