साईं भक्त मधुसूदन कहते हैं: ओम साई राम, प्रिय हेतल पाटिल, मेरा नाम मधुसूदन है, साईनाथ के साथ मेरा अनेकों बार सामना हुआ है, लेकिन मुझे कभी यह एहसास ही नहीं हुआ की यह मुझ पर उनकी कृपा है, और मैं एक मंद बुद्धि भांति कभी समझ ही नहीं पाया कि मेरे जीवन में क्या हो रहा है और साईनाथ का मेरे जीवन में क्या महत्व है।
मैं बाबा की कसम खाता हूं कि इस मेल में लिखा प्रत्येक शब्द सच है, यह कोई बढ़ा-चढ़ा कर कही गयी बात नहीं है| मैं स्वयं से तर्क कर रहा था की ये मेल आपको भेजू या नहीं बहुत असमंजस में था इसीलिए इसे भेजने में थोड़ा समय लगा| मैं यह देख कर भी आश्चर्य चकित था की किस प्रकार इस ब्लॉग में सभी साईं भक्त अपने जीवन में घटी प्रत्येक घटना के लिए साई बाबा को श्रेय देते हैं, इसलिए मैंने भी यह निश्चय किया कि साई ने मेरे लिए भी बहुत कुछ किया है तो क्यों ना मैं अपने अनुभव अन्य भक्तों के साथ साझा करू।
अब, मेरा अनुभव पढ़िए|
19 जनवरी 2009 को रात में मैं सोने की कोशिश कर रहा था पर मुझे नींद नहीं आ रही थी, इसलिए मैंने साईं बाबा की छवियों को गूगल में ढूंढ़ना शुरू किया। आम तौर पर मैं कभी भी 3 पृष्ठों से आगे नहीं ढूंढ़ता, लेकिन इस दिन मैं 10 पृष्ठों तक गया, और मैंने यह छवि देखी जो नीचे दी गयी है|
बस साईं जी की इन आंखें में देखिये, यह मुझे बहुत अछि लगी, मैंने इसके लिंक पर क्लिक किया, इस प्रकार मैंने आपके ब्लॉग को देखा और तत्काल वाक्यांश (phrase) मैंने देखा ‘साई की दीवानी’ यह लिखा था, मैं उन सभी अनुभवों को पढ़ने से स्वयं को रोक नहीं पाया और मैं सुबह के 4 बजे तक सारे अनुभव पढता रहा, तब से मैं आपके ब्लॉग को नियमित रूप से पढता हूं, यह पढ़ते समय जो पहला विचार मेरे मस्तिष्क में आया वो यह था की ‘२१ वीं सदी के हेमाडपंत ‘था और साई ने आपको इस सेवा के लिए चुना है।
जनवरी 2009
7 जनवरी २००9 को यू.के में मंदी के कारण मैंने अपनी नौकरी खो दी। जब कंपनी के निर्देशक ने मुझे बोर्डरूम में बुलाया, और स्थिति के बारे में समझाने लगे| तभी स्पष्ट रूप से मेरे मस्तिष्क में मैंने एक आवाज़ सुनी की ‘तुम्हे इससे बेहतर और अच्छे वेतन वाली नौकरी मिल जायेगी।’ साई ने मुझे इस स्थिति का सामना करने की ताकत दी और दुखी होने के बजाय मैंने निर्देशक से कहा की क्या अब मैं जा सकता हु, वह इन शब्दों से थोड़ा अचरज में पड़ गए। अगले दिन गुरुवार होने के नाते, मैंने साईं सच्चरित्र पढ़ना शुरू किया, मैंने इसे लगातार दो बार पढ़ा और एक दिन जब मैं चावड़ी के समारोह के बारे में पढ़ रहा था, मैं यह कल्पना करने लगा कि जब बाबा जीवित थे, तो वे इस समारोह को कैसे मनाते होंगे| साईं सच्चरित्र के कुछ वाक्यों को पढ़कर मैं आश्चर्यचकित था, जो बाबा ने तात्या से कहा की ‘यदि जाना है तो जाओ किन्तु समय-समय पर आकर मुझे देख कर भी जाना| बाबा तो स्वयं त्रिमूर्ति ‘दत्तात्रेय’ के अवतार है किन्तु फिर भी वह एक सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहे थे, ऐसा सोचते ही मैं जोरो से रोने लगा और रोते-रोते मैं अपने कमरे में लगे साईं की तस्वीर को देख रहा था| मैंने स्पष्ट रूप से देखा कि साईं का मुस्कुराता हुआ चेहरा फ्रेम से बहार आया, उस तस्वीर को मैं नीचे संलग्न कर रहा हूं।
22 जनवरी, 2009 गुरूवार
मैं Nottingham के साईधाम जाना चाहता था, लंदन से यह 2 घंटे का सफर है और मुझे ट्रेन से सुबह 6 बजे ही निकलना होगा ताकि मैं अभिषेकम में शामिल हो सकूँ| 21 और 22 को बिना कारन ही बारिश हो रही थी| 21 तारीख को मैं अपने दोस्त के यहाँ Wembely गया। मैंने बस ऐसे ही उन्हें कहा था कि मैं साईधाम जाना चाहता हूं, मेरे 2 और दोस्त भी मेरे साथ जाने के लिए तैयार हुए| हम सभी कार से सुबह 6 बजे निकले और 10 बजे तक साईधाम पहुंचे। पंडित जी हमारा इंतजार कर रहे थे और उन्होंने हमें अभिषेकम करने के लिए कहा, जब मैं अभिषेकम कर रहा था मेरे आँखों से आंसू बहने लगे और मैं बहुत खुश था, मैं परमानंद का अनुभव कर रहा था, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे जीवन में और कुछ नहीं चाहिए, मैंने प्रार्थना की कि ‘साईं कृपया मुझे मोक्ष प्रदान करें’। मुझे आशा है कि वह जल्द ही मेरी ये इच्छा पूरी करेंगे। मेरी हमेशा से इच्छा थी की मैं साईं मंदिर में भोजन करू, पर ऐसा कभी नहीं हुआ, किन्तु 22 तारीख को पंडित जी ने हमसे कहा कि हम वहा खाना तैयार करें और खाना खाने के बाद ही वहा से जाए, फिर से साईं ने मेरी यह इच्छा भी पूरी की। अब आप समझ गए होंगे की साईं ने अन्य दो दोस्तों को मेरे साथ भेजा ताकि मैं अकेला न जाऊं और उन्होंने मुझे ट्रेन के बजाय कार से जाने की सुविधा प्रदान की ताकि हमे परेशानी ना हो और हमे उन्ही के मंदिर में भोजन करने का सौभाग्य भी दिया, इससे अधिक और कोई क्या चाह सकता है।
मई 2009
मैंने अपना व्यवसाय 2005 में शुरू किया था, जिसमे हमें गंभीर नुकसान उठाना पड़ा| इसके बाद मैंने अपना ध्यान रियल एस्टेट में केंद्रित किया और उसमे हम नाकाम रहे, अपने कार्यालय के कर्मचारियों को 4 महीने से हम वेतन नहीं दे पा रहे थे, इसीलिए वो सभी बहुत नाराज़ थे, मई के महीने में मैं पूरी तरह से तनाव में था, पता नहीं क्या करना था, मेरे पास 3 साईं बाबा की किताबें थीं जो की जिनके लेखक अलग-अलग थे| एक दिन मेरे सभी कर्मचारी बहुत भड़क गए और उन्होंने ऑफिस के कंप्यूटर और फर्नीचर को बेचकर उनकी तनख्वाह की भरपाई करना चाहते थे| मैं घर पर ही था और मैंने अपने भाई को इस स्थिति को निपटने के लिए भेजा कि वह सिर्फ 23 साल का था और मुझ से 4 साल छोटा है, मैं कायरों की भांति घर पर ही बैठा रहा, मुझ में वह परिस्थिति का सामना करने की हिम्मत नहीं थी, इसलिए मेरा भाई उसका नाम साई कृष्णा है उसे ये परिस्थिति संभालनी पड़ी। उस दिन मैं मानसिक रूप से निर्जीव हो गया था, मैं असहाय था, मैं केवल बिस्तर पर लेटे हुए साईं की किताबें पढ़ता जा रहा था और साईंबाबा से प्रार्थना की कृपया हमारी मदद करें, हमें इस स्थिति से बाहर निकालें| मैंने उस दिन एक सपना देखा की एक दुर्घटना से मैं गहरी खाई में गिर रहा था एक और मेरी आत्मा ने मेरे शरीर को छोड़ दिया और मैंने स्वयं को बिस्तर पर पड़ा हुआ पाया, मैं अपनी उँगलियाँ भी हिला नहीं पा रहा था| मैंने स्पष्ट रूप से यह कहते हुए आवाज सुनी कि ‘आत्मा को बहार जाने के लिए कम से कम कमरे का दरवाजा तो खुला होना चाहिए। उस कमरे के सभी दरवाजे बंद थे, इसलिए कमरे से बाहर नहीं जा सकता था| इसके बाद मैं अचानक उठा, मुझे ऐसा लगा जैसे कि मैं लंबे समय तक कोमा में रहने के बाद अपने होश में आया| तब मैंने पहली चीज जो देखी वह साईबाबा की किताब थी, तब मुझे एहसास हुआ कि उसने मुझे यह दुसरा जीवन दान दिया है ताकि मैं अपने माता-पिता की सेवा और अपने परिवार की मदद कर सकू। अब भी जब कभी मैं उस घटना को याद करता हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और मैं ज़ोरो से रोने लगता हु। उसके बाद मैं साईं की कृपा से लंदन आ गया और एक अच्छी नौकरी करने लगा।
2006
मैं 3 बेडरूम वाले फ्लैट में दोस्तों के साथ रहता था, उन दिनों हमारा बिजनेस हाल ही में शुरू हुआ था और मेरे दोस्त मेरे साथ रहते थे। एक रात मैं अपने फ्लैट में अकेले सो रहा था, आम तौर पर मुझे कभी डर नहीं लगता, अब भी मैं लंदन में अपने फ्लैट में अकेला रहता हूं पर मैं कभी नहीं डरा, लेकिन उस दिन मैं बहुत डर गया था, मैंने ‘साईराम’ का जाप करना शुरू कर दिया, आखिरकार मुझे नींद आ गई। अचानक मैं बीच रात में उठा, मैंने साफ-साफ़ साईं बाबा को देखा एक चमकदार चांदी के रंग में, वह रात भर मेरी रखवाली करते रहे। यदि आप उन पर भरोसा करते हैं, तो वह आपके लिए कुछ भी कर सकते है, मेरे लिए तो वह सब कुछ है, मेरे पिता, माता और प्यार से उन्हें मैं तातय्या (दादाजी) पुकारता हूँ|
जैसा कि मैंने पहले कहा था कि साई के साथ मेरी अनगिनत मुलाकातें और अनुभवे हुईं, एक अस्थिर व्यक्ति होने के नाते, एक बार जब मेरा काम पूरा हो जाता है, तो मैं साई को भूल जाता हूं, और दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में लग जाता हूं| मुझे यकीन है कि साईं मुझे जल्द ही एक अच्छी नौकरी प्रदान करेंगे। मुझे नौकरी नहीं मिलने का डर भी नहीं है क्यूंकि मुझे पता है कि साईबाबा सब कुछ संभल लेंगे| आप सभी लोगों की तरह मैं भी उन्ही का बीटा हूँ। अगली बार मैं आपको अपनी शिर्डी यात्रा का अनुभव भेजूंगा, किस प्रकार मैंने साईं को देखा और उन्होंने मनमाड एक्सप्रेस में मेरे साथ यात्रा कैसे की, क्योंकि यह ईमेल बहुत बड़ी हो गई है| मैं उस अनुभव के बारे में आपको बहुत जल्द लिखूंगा।
हेतल जी, आखरी में मैं यह लिखना चाहता हु, जनवरी 2009 के बाद से मेरे जीवन में जो भी हो रहा है वह सब साईं जी के कारण ही है। वह मेरे हर एक पल की योजना बनाते है, इससे पहले मैं सोचता था कि यह सिर्फ एक संयोग है लेकिन नहीं, इतने सारे भक्तों के अनुभव पढ़ने के बाद, अब मुझे एहसास हुआ कि साई क्या है, और मैं आपका ऋणी हूं की मैं साईं को देख सका हूँ जैसे वो है। वे तो स्वयं भगवान् है और मेरे दादाजी भी है। अब भी मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मुझे सचमुच लग रहा है कि साईं ही मुझ से ये मेल टाइप करा रहे है, वह हमेशा की तरह मेरे साथ है। दो दिन पहले भी मैंने उन्हें सपने में देखा वह स्पष्ट रूप से कह रहे थे ‘मेरा पूरा शरीर हृदय है’ जो निम्न चित्र को दर्शाता है…. जब कभी भी मैं दुखी, चिंतित या चिढ़ता हूँ तो इस तस्वीर को देखता हूँ|
आपके इस कार्य के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, मुझे यकीन है कि आपको स्वयं बाबा ने ही चुना है इस कार्य के लिए।
ॐ साई राम।
मधुसूदन।