साईं भक्त – लक्ष्मण मामा कुल्करनी

Sai Devotee : Laxman Mama Kulkarni से अनुवाद

लक्ष्मणराव कुल्करनी रत्नपारखी जी माधव राव देशपांडे जी के मामा थे। वह भी शिर्डी में ही रहते थे और एक रूढ़िवादी ब्राह्मण थे। वह छूआछूत और धार्मिक संस्कारों के नियमों का पालन बहुत सख्ती से करते थे और गांव में “लक्ष्मण मामा” के नाम से जाने जाते थे। वह वतंदर कुल्करनी और शिर्डी के ग्राम जोशी थे।

जबकि एक ओर बाबा के सभी भक्त उनके चमत्कारों का अनुभव कर रहे थे, लक्ष्मणराव जी ने ऐसी चीजों से दूरी बनाए रखी। उन्हें ना ही केवल बाबा पर अविश्वास था, बल्कि वह बाबा के बहुत कट्टर विरोधी भी थे।





एक बेवकूफ़ व्यक्ति की खराब सांगत और ख़राब आदतो के शिकार होने की सम्भावना ज़्यादा होती है। ऐसा इंसान केवल अपने अहंकार में ही होता है और केवल अपने आप में ही विश्वास रख सकता है। धीरे-धीरे वह सोचने लगता है कि वह भगवान से बडा है। ऐसे व्यक्ति को उचित मार्ग में लाने के लिए भगवान उन्हें कुछ परेशनिया देते हैं और वह व्यक्ति अपने होश में वापस आना शुरू कर देता है। तब सर्वशक्तिमान अपनी आंतरिक आत्मा में प्रवेश करते हैं और उसे बचाते हैं।

लक्ष्मणराव जी के साथ भी यही हुआ। इस अहंकारी व्यक्ति को एक ख़तरनाक और लाइलाज बीमारी हो गयी। उन्हें विभिन्न उपचारों के बावजूद भी कोई फ़ायदा नही हुआ और वे अनेक कष्ट पा रहे थे । आख़िरकार अंतिम उपाय के रूप में वह बाबा की मज़्जिद में आए।

बाबा ने उन्हें शांत आँखों से देखा, लक्ष्मणराव जी के शरीर पर अपना हाथ फेरा और कहा, “जाओ, अल्लाह सब ठीक करेगा।” लक्ष्मणराव जी ने जबसे मज़्जिद में कदम रखा था तभी से उनमें एक चमत्कारिक परिवर्तन हुआ और अब उनके ऊपर बाबा का आशीर्वाद भी था। उसी समय से वह बाबा के भक्त बन गए।

एक अन्य अवसर पर, बाबा ने लक्ष्मणराव जी की परीक्षा ली। बप्पाजी लक्ष्मणराव का एकमात्र बेटा था। जब वह छोटा था, उसे कुछ असाध्य रोग हो गया। लेकिन अब लक्ष्मणराव जी को बाबा पर पूर्ण विश्वास था, इसीलिए अन्य औषिधि उपचार के साथ हर रोज वह बाबा के हाथों से उदी लाकर बाप्पाजी को पानी में घोलकर देने लगे। हालाँकि एक समय ऐसा आया जब लोगो को लगा कि बाप्पाजी अब नही बचेगा। लक्ष्मणराव जी मज़्जिद की ओर दौडे कर गए और बाबा के चरणों में गिरकर रोते हुए कहा, “बाबा, मेरे बेटे को बचाओ! हे मेरे भगवान, मैं आपके शरण में आया हूँ”।

लेकिन, अचानक बाबा उस पर चिल्लाए “दूर हो जाओ!” और उन्हें गालियाँ देने लगे। लक्ष्मणराव जी भयभीत हो गए। वह बाबा के अजीब व्यवहार को समझने में असमर्थ थे। वास्तव में, अब लक्ष्मणराव जी बाबा में विश्वास करने लगे थे मगर उनके पुराने दोष पूरी तरह खत्म नही हुए थे। उनका कुछ अहंकार अभी भी शेष था, कुछ प्रश्न और संदेह अभी भी उनके मन में बार-बार पनप रहे थे।

भारी मन से लक्ष्मणराव घर लौट आए, और कुछ समय बाद बाबा अपनी जगह से उठकर मज़्जिद की सीढ़ी से उतरकर सीधे लक्ष्मणराव जी के घर गए। उन्होंने प्यार और स्नेह के साथ बप्पाजी के शरीर पर अपना हाथ फेरा और तुरंत ही वापस लौट कर आए। उस क्षण से बाप्पाजी को राहत मिलने लगी।

अब लक्ष्मणराव जी को विश्वास हो गया कि बाबा भगवान के अवतार हैं। उन्होंने फैसला कर लिया कि अपने हर काम में वह बाबा को याद करेंगे। हर सुबह, लक्ष्मणराव जी स्नान-संध्या के नियमो को पूरा करके, बाबा के दर्शन का लाभ उठाने के लिए मज़्जिद में जाया करते थे। वहाँ जाकर बाबा के पैर धोकर, तिलक लगाकर, फूलों और तुलसी के पत्तो को चढ़ाकर, धुप-दीप नेवैध्य और दक्षिणा देते थे। इसके बाद स्वयं को बाबा के चरणों में समर्पित करते और उनका आशीर्वाद लेते थे। फिर वह प्रस्तुत लोगो में प्रसाद बाटते थे। उसके बाद वह गाँव के अन्य देवी और देवताओं की पूजा करते थे। यह उनकी दैनिक दिनचर्या थी और उन्होंने इसका अंत तक पालन किया। उन्होंने महान भक्ति के साथ बाबा की सेवा की।

सूत्र : गुजरती मैगज़ीन “द्वारकमाई” से अनुद्वदित

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Translated and Narrated By Rinki
Transliterated By Supriya

© Sai Teri LeelaMember of SaiYugNetwork.com

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Hetal Patil Rawat
Hetal Patil Rawat
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