यहाँ पर मैं एक और साईं भक्त राणा गिल जी के अनुभव को आप सभी के साथ बांटना चाहती हूँ। यह कहना उचित नहीं होगा कि वह एक अच्छे इंसान हैं और एक साईं भक्त हैं, बल्कि मैं यह कहूँगी कि वो साईं भक्त हैं इसीलिए एक अच्छे इंसान हैं। वह पंजाब के पटियाला डिस्ट्रिक्ट से हैं, पर पिछले 8 वर्षो से वैंकोवर बी.सी. कॅनाडा में रह रहे हैं। उन्होंने “साईं तेरे हजारों नाम” के नाम की एल्बम रिलीज़ की थी और इसका टाईटल विडियो चंडीगड़ के 29 सेक्टर साईं मंदिर में बनवाया था। उन्होंने मुझे उस भजन के विडियो को मेरे ब्लॉग में डालने का आग्रह किया था।
मैंने उस एल्बम के सारे भजन सुने है और वो इतने अच्छे हैं कि उनकी बड़ाई करने के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है। इसी बारे में मेरी उन से दो बार फ़ोन पर बात हुईं थी और तभी उन्होंने शिर्डी साईं बाबा के उनके अनुभव के बारे में मुझे बताया। मैं उसी अनुभव को यहाँ आप सभी के साथ बाँट रही हूँ।
राणा गिल जी 2006 में भारत आए थे। वह जब भी भारत में आते हैं तो बाबा की पवित्र भूमि शिर्डी में अवश्य जाते हैं। एक दिन शिर्डी जाने के लिए उन्होंने अंबाला कैंट-पंजाब से शिर्डी के लिए ट्रेन पकड़ी और मनमाड़ (महाराष्ट्र राज्य) में पहुंचे। मनमाड से उन्हें शिर्डी पहुंचने के लिए बस में यात्रा करनी पड़ी। बस कोपरगांव बस स्टैंड पर रुकी हुई थी जो की शिर्डी से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। जब वह बस में बैठे हुए थे, तब उन्होंने एक बूढ़े बाबा को देखा। उस बाबा ने हाथ में छड़ी भी पकड़ रखी थी और राणा जी से पुछ रहे थे कि वह बस शिर्डी जायेगी या नहीं । राणा जी उस बाबा से कहा कि हाँ जाएगी।
चूंकि आदमी बहुत बूढ़ा था, इसलिए उसे बस में चढ़ने में कठिनाई हो रही थी। राणा जी ने उनकी मदद की और उस बाबा को अपनी खुद की सीट बैठने के लिए दी जो की ड्राइवर के पीछे की सीट थी। उस सीट पर राणा जी के साथ तीन और व्यक्ति भी बैठे थे। राणा जी के अपनी सीट उस बाबा को देने के कारण, अन्य लोगों ने तर्क किया कि वे उस बाबा के साथ बैठना नहीं चाहते हैं, क्योंकि वह बहुत बूढ़ा और गरीब था। बस यात्रियों से भरी होने के कारण, राणा जी पीछे की तरफ चले गए और बहुत से लोग उनके आगे आ चुके थे इसीलिए वह उस बाबा के लिए कुछ भी नहीं कर पाए । राणा जी को बहुत बुरा लग रहा था क्यूंकि वो उस बूढ़े बाबा की मदद नहीं कर पा रहे थे।
कंडक्टर ने बस के अन्दर जाते ही वहाँ का दृश्य देखा और तुरंत ही उसने उस बूढ़े बाबा के हाथ को बहुत बुरी तरह पकड़ा और उन्हें बस से बाहर खींच लिया। बूढ़े बाबा ने सब कुछ देखा और जोर से कहा कि (साई) बाबा चाहते हैं कि वह शिर्डी जाएं, लेकिन कंडक्टर ने उनकी नहीं सुनी। बस आगे बढ़ी और राणा जी ने खिड़की से देखा कि वह बूढ़ा बाबा उन्हें खिड़की से बस में ढूंड रहे था। राणा जी पूरे रास्ते भर यही सोच कर दुखी होते रहे कि वह उस बाबा की मदद नहीं कर पाए और मदद के लिए उनके सभी प्रयास व्यर्थ हुए ।
वह शिर्डी पहुंचे और शाम को उन्हें शिर्डी साईं बाबा के अच्छे दर्शन मिले। अन्य सभी जगाहों पर भी उन्हें अच्छे दर्शन मिले और उस समय तक राणा जी उस बूढ़े बाबा के बारे में लगभग भूल चुके थे। अगले दिन वह अपने सुबह के नित्य क्रम करने के बाद, करीब सुबह 3:30 बजे समाधि मंदिर जा रहे थे। दुकाने भी बंद थी और एक भी व्यक्ति आस पास नहीं दिख रहा था। उन्होंने देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति द्वारकामाई से उनकी ओर आ रहा था। जब बूढ़ा व्यक्ति उनके पास आया, तो राणा जी उसी बूढ़े बाबा को देखकर चौंक गए जो उन्हें बस में मिला था। उस बाबा के एक हाथ में छड़ी थी और उन्होंने दूसरा हाथ भिक्षा मांगने के लिए आगे बढ़ाया, और राणा जी ने उन्हें कुछ पैसे दिये। राणा जी पिछले दिन उनकी मदद करने में असफल होने के कारन उस बाबा से माफ़ी माँगने लगे।
लेकिन बूढ़े बाबा एक शब्द भी नहीं बोले, उन्होंने सिर्फ भिक्षा के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाये रखा और राणा जी ने अपना बटुआ खोलकर उन्हें कुछ और पैसे दिए। उस बाबा ने पैसे को अपने एक हाथ से दुसरे हाथ में रख लिया और अपना दायाँ हाथ उठा कर राणा जी को आशीवाद दिया जैसे की साईं बाबा आशीर्वाद देते हुए दीखते हैं। ऐसा करके वो बूढ़े बाबा वहाँ से चले गया। जब राणा जी लगभग दस कदम चले, तो अचानक उनके मन में विचार आया की “शायद वो साईं बाबाजी ही थे”। तुरंत ही वो पीछे मुड़े पर उन्हें वो बाबा नहीं दिखे, हालांकि उन्होंने उस बाबा को बोहत धुंडा और आधे घंटे तक उसी जगह पर रहे, पर कोई लाभ नहीं हुआ। राणा जी को पूरा यकीन था कि वह बूढ़ा बाबा साईं बाबा जी ही थे, और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।
इस घटना के बाद राणा जी समाधि मंदिर में गए और उन्हें वो ख़ुशी महसूस हुई जो उन्होंने पहले कभी महसूस नहीं कि थी और उन्होंने पूरा दिन शिर्डी में ही बिताया, लेकिन वह बाबा उन्हें कहीं भी नहीं मिला । अब मैं पाठकों को यह तय करने के लिए छोड़ देती हूं कि क्या वह बुढा आदमी शिर्डी साईं बाबा थे या नहीं।