Devotee Experience – C.Saibaba से अनुवाद
प्रिय हेतल,
साईंराम!
साईं भक्तों की आप सचमुच ही एक अंगरक्षक की तरह सेवा कर रही हैं| हालाँकि मेरे माता-पिता ने मेरा नाम साईंबाबा रखा, परन्तु मैं अपने जीवन में कभी-कभार ही साईं मंदिर गया| मेरे पूरे जीवन में साईं मंदिर जाना कोई बहुत महत्त्वपूर्ण भी नहीं होता था| मैं अभी 54 वर्ष का हूँ| उड़ीसा मुख्यालय के अंतर्गत रेलवे में पुरी में पदस्थ हूँ| सन 2004 से मैं कार्यालय से, व्यक्तिगत रूप से और आर्थिक रूप से भी व्यथित था| यह सब मेरी ही गलतियों और पापों का फल था|
मई के माह मेंएक दोपहर को मैं पुरी में अपने कार्यस्थल पर था| चूंकि भोजन-अवकाश का समय था, इसलिए मैं भोजन करने के लिए होटल जा रहा था| तभी एक सफ़ेद वेशभूषा वाले पंजाबी व्यक्ति, जिनकी उम्र लगभग 50 वर्ष होगी, उन्होंने मुझे पुकारा और कहा,
साईं, क्या तुम मुझे 20रु दे सकते हो??
मै हैरान रह गया, क्योंकि मैं इन व्यक्ति को जानता तक नहीं था और उन्होंने मेरा नाम लेकर मुझे पुकारा था| मेरे मित्र और करीबी रिश्तेदार ही मुझे साईं कहकर बुलाते हैं| उस समय मेरे पास बटुआ नहीं था सो मैंने कहा कि मेरे ऑफिस चलिए| वे पीछे-पीछे ऑफिस आये| मैंने उन्हें 20रु. दिए, जो उन्होंने एक किताब में रख लिए| तब मैंने पूछा कि, “आपको मेरा नाम कैसे मालूम हुआ?” उन्होंने कहा कि वो शिर्डी से आये है और उनके लिए सभी साईं हैं. मुझे ऐसा जवाब सुनकर जरा हंसी आई और मैं वहां से जाने लगा| बड़ा आश्चर्य हुआ जब उन्होंने मुझे 20 रु| लौटाते हुए एक रुद्राक्ष दिया और कहा,
साईं तुम अभी परेशान हो, मै तुमसे ये पैसे तब लूँगा जब तुम ठीक रहोगे और मै तब तुम्हारे घर आऊंगा|
मैंने पूछा आपको मेरा घर कैसे मालूम होगा| तब उन्होंने कहा,
साईं हैं न, वे ही मुझे रास्ता दिखायेंगे| फिर उन्होंने स्वयं ही सलाह दी कि इस पैसे से खीर बनाने का सामान खरीद लेना और जून 2007 में लगातार तीन गुरुवार तक खीर काली गाय को खिलाना|
मुझे इन सब पर ज्यादा विश्वास नहीं है, फिर भी मैंने अपने परिवार-जन से चर्चा की| मेरा छोटा भाई सत्य साईंबाबा का अनन्य भक्त है, उसने मुझे ‘साईं सत्चरित्र’ तेलुगु भाषा में दी थी और कहा था ‘आपने इतनी सारी किताबें पढ़ी हैं, इसको पढ़िए और आपको साईंबाबा की लीलायें समझ आएँगी|’ मैंने एक दो बार पढ़ी| मैंने एक गुरुवार को खीर बनायी और एक केले के पत्ते पर रखकर काली गाय खोजने निकल पड़ा| लेकिन 2 घंटे तक की खोज-बीन के बाद भी एक भी गाय नहीं मिली, और मैं भी खुद को कोसने लगा कि कहाँ एक अनजान व्यक्ति की बात पर भरोसा करके कुछ भी करने निकल पड़ा हूँ| तभी क्या देखता हूँ कि एक सफेद गाय मेरे घर के दरवाजे पर खड़ी है| मेरी बेटी जोरों से चिल्लाई, “पापा देखो जो आप ढूंढ रहे थे वो काली गाय यहाँ खड़ी है”| तुरंत मेरी आँखों से आँसू बह निकले| मैंने उस काली गाय को खीर खिलाई और आश्चर्य कि लगातार तीन सप्ताह तक वह काली गाय उसी समय पर मेरे घर के सामने आकर खड़ी हो जाती| इस दौरान मैने साईं सत्चरित्र का पाठ जारी रखा| अब बाबा ने ही मुझे साईंपथ पर खींच लिया है| उन्होंने अपनी बात को रखा,
अब बाबा ही मेरे लिए सब कुछ हैं, मेरे मार्गदर्शक, मेरे दार्शनिक और मेरे जीवन का प्रकाश और मेरा जीवन भी.