Devotee Experience – Renu से अनुवाद
यह सभी को ज्ञात है कि जो भी पवित्र भूमि शिर्डी जाते हैं, साईं बाबा उन सभी भक्तो का ध्यान रखते हैं। बाबा के दरबार में हर भक्त का विशेष आदर-सत्कार होता है। नीचे दी गई पोस्ट इसी बात को सिद्ध करती है। एक साईं भक्त परिवार हाल ही में शिर्डी गए और शिर्डी में जो अनुभव उन्हें हुआ उसे आप सभी के साथ साँझा करना चाहते है। परिवार के मुखिया ने एक दुर्घटना में अपने पैर गवां दिए थे और बाबा ने उनकी यात्रा को आरामदेह और अविस्मरणीय बनाने का पूरा ध्यान रखा।
साईं राम मित्रों,
आप सभी को पूरा वृतांत बताने में साईं बाबा कृपया मेरी सहायता करें।
सचमुच मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से आरंभ करूँ, फिर भी कोशिश करती हूँ। हम 5 नवंबर 2008 को बैंगलोर से रवाना होने वाले थे। हमारी योजना थी कि उसी शाम मन्त्रालयम पहुँचकर, राघवेन्द्र दर्शन करेंगे, और रात वहीँ ठहर कर अगली सुबह शिर्डी के लिए रवाना होंगे। मैंने मन्त्रालयम में होटल बुक करने के लिए हर-संभव प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। जब मेरी बहन वासंती ने मुझे हमारी यात्रा के बारे में जानने के लिए मुंबई से फ़ोन किया तब मैंने ‘हमारे हॉल में लगी बाबा की मूर्ति की ओर देखते हुए कहा-” देखो वासंती, हमें वहां कमरा नहीं मिल रहा है। मोहन की समस्या के कारण, हम बिना सोचे-समझे निकल नहीं सकते और यह नहीं सोच सकते कि वहां जाकर कमरा ढूंढ लेंगे, साईं को तो सब कुछ पता ही है, उन्होंने ही हमें स्वप्न में और उत्तरों द्वारा भी निमंत्रित किया है, अब वे ही हमारी सहायता करेंगे, और हमारे लिए मठ में एक कमरा बुक करेंगे। अब मैं और अपना दिमाग ख़राब नहीं करुँगी। ऐसा लगता है कि शिर्डी में भी इस समय बहुत भीड़ होगी। कहते हैं कि सामान्यतः जनवरी में ज्यादा भीड़ नहीं होती। तो यदि अभी कमरा बुक नहीं हुआ तो, हम लोग जनवरी 2009 में ही शिर्डी जायेंगे। यही मैंने उससे कहा था।
2 से 3 घंटे के भीतर ही, मोहन के एक मित्र ने यूँ ही फ़ोन किया, और कॉटेज बुक करने में मदद की (जो कि राघवेन्द्र मठ की थी), उन्होंने वर्तमान स्वामीजी के निजी सहायक की मदद से विशेष दर्शन का भी प्रबंध किया।
अब हमारे अनुभव/ साईं लीलाएं सुनिए
1- हम प्रायः ही जब भी बाहर जाते हैं तो अपने घर के पास की महालक्ष्मी ले आउट में स्थित हनुमान जी के मंदिर जाते हैं, और सुरक्षित यात्रा के लिए उनका आशीर्वाद लेते हैं। इस वर्ष भी, हमने उनके दर्शन के लिए अपनी कार रोकी। जब मोहन ने मूर्ति के सामने खड़े होकर आँखे बंद की तो उसे साफ़-साफ़ सुन्दर शिवलिंग के दर्शन हुए, वह बहुत ही प्रसन्न हुए। रास्ते में, बार बार हमें कई शिवलिंग के दर्शन होते रहे, शायद यही कारण होगा कि मोहन को दर्शन हुए थे।
2- गोपी सर, (जिन्होंने मेरे साईं भक्त मित्र के कहने पर शिर्डी में विशेष दर्शन का प्रबंध किया था) उन्होंने ने बताया कि वह अपने कमरे से साईं मंदिर की ओर जाते हुए सोच रहे थे कि इतनी भारी भीड़ में दर्शन का प्रबंध करना क्या उनके लिए संभव होगा? जब वे ऐसा सोच ही रहे थे, तभी अचानक उन्होंने एक कागज़ देखा जो जमींन पर था और उसमे राधा कृष्ण स्वामीजी की फोटो थी, जो कि शिर्डी साईं के बहुत पहुंचे हुए भक्त है, बैंगलोर में रहते हैं और दक्षिण में साईंवाद का प्रसार कर रहे हैं। सर ने बताया कि एकदम अनूठे तरीके से साईं ने उन्हें सांत्वना दी कि उन्हें मेरे विचार और बैंगलोर से आये लोगों के बारे में सब ज्ञात है और वे आज सभी को खूब सारा आशीर्वाद देने वाले हैं।
3- सिक्यूरिटी ने मुझे और मोहन को एक गेट से और शरण्या और अश्विनी को दूसरे गेट से जाने दिया। वे दोनों ही बहुत नाज़ुक तरह के है और इतनी भीड़, धक्कामुक्की, शोर, झगड़े के आदि नहीं हैं। मुझे सच में चिंता थी। हमें बहुत ही अच्छी तरह दर्शन हुए और किसी भी सिक्यूरिटी ने धक्का भी नहीं दिया। जबकि वे बाकी लोगों पर नाराज़ हो रहे थे लेकिन हमें देखकर मुस्कुराये। हम 25 मिनट तक वहीँ खड़े रह सके। वो भी इतनी भीड़ में, यह हमारे लिए अविश्वसनीय था। गोपी सर के लोगों ने केवल हमें अन्दर ही भेजा था। किन्तु भीतर के लोग तो अलग थे। इसलिए हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि वे हमें बाहर जाने के लिए क्यों नहीं कह रहे हैं। मै समाधि मंदिर की कतार में अपने बच्चो को ढूँढने लगी। दरअसल मेरे बच्चो को बहुत अजीब लगता है जब कोई उन्हें छुए या धक्का दे। मैं लगातार प्रार्थना करती जा रही थी साईं मुझे मेरे बच्चे दिखा दीजिये। साईं उनकी झलक दिखाइये।
तब मुझे मेरी गलती का अनुभव हुआ (बार बार मैं मेरे बच्चे मेरे बच्चे कह रही थी) और फिर सिर्फ एक बार ही मैंने कहा कि बाबा आप तो बच्चों को बहुत प्यार करते हो। आखिर वे आपके बच्चे हैं। यदि आपको उनकी समस्या मालूम है तो अभी मुझे बच्चे दिखाइये। जैसे ही मैं मुड़ी, देखा कि कतार में आशु और शरण्या थे। वे भी सामने आये और हमारे साथ ही खड़े रहे। सिक्यूरिटी ने हम चारों को समाधि के पास बुलाया और हमें बहुत ही शांतिपूर्ण दर्शन हुए।
4- हम शिवनेषण स्वामीजी के आश्रम गए, वहां कश्यप जी ने, जो कि बहुत ही दयालु और सज्जन व्यक्ति हैं हमारा स्वागत किया और सब जगह ले गए और सारी चीजें विस्तार से समझाई। बड़ी ही अच्छी जगह थी वो, पूर्णतः शांत, दिव्य तरंगों से परिपूर्ण, साधना और प्रार्थना के लिए उपयुक्त स्थान थी वह।
5- मैंने संकल्प लिया था कि गुरुस्थान में 108 प्रदक्षिणा करुँगी किन्तु मैं पिछले दिन गुरुस्थान में केवल 54 प्रदक्षिणा ही कर पाई थी। मुझे ऐसा लगा कि बाकि प्रदक्षिणा यहाँ(आश्रम में) करूं और मैंने की। जब कश्यप जी ने बताया कि शिवानेषण स्वामीजी सभी को सलाह देते थे कि सभी समस्याओं को दूर करने के लिए प्रदक्षिणा करनी चाहिए और उन्होंने कहा कि वे स्वयं भी गुरुस्थान में हर दिन प्रदक्षिणा करते हैं, और कभी कभी आधी रात को भी प्रदक्षिणा करते हैं। मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि मैंने उचित स्थान पर अपना संकल्प पूरा किया।
हमारी इस शिर्डी यात्रा के 2 और अनुभव आपको बताती हूँ:
1- यात्रा के दौरान, हम आरती और कई साईं भजन भी गा रहे थे उसके बाद मुझे श्री साईं स्तवन मंजरी का पाठ करने की इच्छा थी, मैं 31 पद ही समाप्त कर पाई फिर हमें भोजन के लिए रुकना पड़ा और भोजन के बाद भी कुछ बात-चित चल रही थी और मैं पाठ पूरा नहीं कर पाई। तब मैंने सोचा कि शिर्डी में ही इसे पूरा करुँगी।
शिवनेषण स्वामीजी के आश्रम में, मैंने पढना शुरू किया और उसे समाप्त भी किया, सभी के लिए प्रार्थना की और ज़रीना मैडम जी को उनके अच्छे कार्य के लिए धन्यवाद भी दिया। मैं वाकई बहुत ज्यादा खुश थी कि मैं उनके स्थान पर बैठ कर पाठ कर पाई।
शाम को जब हम गोपी सर से चावड़ी के पास बातें कर रहे थे, सर ने धीरे से बताया कि आज एकादशी है। हम सभी जानते हैं कि एकादशी के दिन स्तवन मंजरी का पाठ अत्यंत प्रभावशाली होता है (जैसे स्वयं दास गनु जी ने कहा है)। मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और मैंने साईं जी को इस प्रबंध के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दिया।
2- हमारी यह आदत है कि हम शिर्डी से निकलने से पहले उनकी अनुमति लेते हैं। इस बार भी 5.30 बजे सुबह मैं और मोहन समाधि मंदिर में अनुमति लेने गये। हम जब कतार में खड़े थे तब हमने देखा की सिक्यूरिटी एक भक्त के पास गया और मिश्री का पैकेट उन्हें दिया, उन्होंने कहा मुझे नहीं चाहिए, ऐसा उन्होंने क्यों कहा यह साईं ही जाने। हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी समाधी में कोई उनके प्रसाद को ठुकरा सकता है। तुरंत ही सिक्यूरिटी ने वह प्रसाद मोहन को दिया। वह भक्त जिसने ठुकराया था, विचलित होकर मोहन को और प्रसाद की ओर देखता रहा। मैंने सोचा कि थोडा प्रसाद उसे भी दे दूं फिर मैं घबरा गई और उसे नहीं दिया। जब हम मूर्ति के पास पहुंचे तो एक पुरोहित ने मोहन को एक हार दिया, हमारी ख़ुशी का तो ठिकाना न रहा। हमने इसे बाबा का आशीर्वाद समझा।
दर्शन के बाद, हम बाहर निकलने ही वाले थे की एक महिला आई और मेरा हाथ पकड़कर खींचा और उन्होंने रुकने को कहा। मैं डर गई थी कि सिक्यूरिटी हम पर नाराज़ होंगे, हम दोनों दरवाजे के पास खड़े हुए। अचानक 4 व्यक्ति आये और समाधि से कांच का शटर हटा दिया।
(पहले, हम समाधि में साईं जी के पादुका को स्पर्श कर सकते थे, लेकिन स्वर्ण सिंहासन बन जाने के बाद से ही उसे पूरी तरह ढक दिया गया है और हम पादुका पर माथा नहीं टेक सकते और नाही पहले की तरह समाधि स्पर्श कर सकते है। मुझे बहुत बुरा लग रहा था और मैं बार बार साईं से कह रही थी कि इस सिंहासन के कारण हम आपकी पादुका स्पर्श नहीं कर पा रहे हैं, किसी भी तरह हमे स्पर्श करने दो और अपना आशीर्वाद दो।
फिर मैंने तुरंत कहा की आप इस सिंहासन पर बैठे बहुत अच्छे लग रहे हो साईं, आप हमारे लिए साईं महाराज हो। लेकिन फिर भी मेरी हार्दिक इच्छा थी कि पादुका स्पर्श करूँ और अपना माथा रख सकूं)
वह महिला कहने लगी कि आओ और पादुका स्पर्श कर लो और उनका आशीर्वाद ले लो। हम तो रोने ही लगे। हमने पवित्र पादुका पर माथा टेका, उन्होंने पादुका के ऊपर अभिषेक का पात्र रखा था। जब हमने माथा टेका तो अभिषेक की कुछ बूँदें हमारे सर पर भी गिरी, हम साईं के कितने पास थे, उनकी आशीष हम पर थी और हम पूर्णतः संतुष्ट थे।
साईं माँ धन्यवाद। हम आपको प्रेम करते हैं।
वे कैसे हमें पढ़ लेते हैं और हमारी हार्दिक इच्छायें पूर्ण करते हैं यह वे ही जाने।
आपके समय और धैर्य के लिए धन्यवाद
सभी मित्रों को प्यार,
श्री साईं के चरणों में प्रणाम!! ॐ शांति!!
साईं की कृपा से मैं और भी अनुभव बाद में पोस्ट करुँगी।
साईं राम
रेणु