बाबा को लेकर चमत्कार केवल शिर्डी जाने पर ही नहीं होते हैं, वे कहीं भी, कभी भी संभव हो सकते हैं, जिसे अनुभव करने के लिए ज़रूरत है तो केवल बाबा पर पूर्ण विश्वास और उन पर पूर्णतः निर्भर होने की। ‘पूर्णतः निर्भर’ यह शब्द थोड़ा विचित्र लग सकता है, किन्तु यही उपयुक्त है, पूर्ण श्रद्धा का सठिक और उचित अर्थ है पूर्ण रूप से अपने गुरु को आत्मसमर्पण करना। एक तरह से इसका अर्थ है कि हम बाबा पर लगभग पूरी तरह निर्भर होते हैं, में उन हर परिस्थिति में जो हमारे नियंत्रण हो और जो ना हो।
हर साईं भक्त के जीवन में चमत्कार होते है, यदि आंतरिक दृष्टि से देखा जाए तो हम उन्हें महसूस करते हैं अन्यथा इसे हम नज़रअंदाज़ करते है और सोचते हैं कि वे केवल सह-घटनाएं (co-incidences) हैं। यदि अच्छे परिणाम देने वाली कोई भी अप्रत्याशित घटना होती है तो एक सामान्य व्यक्ति इसे ‘सह-घटनाओं’ के रूप में संदर्भित करता है, लेकिन साईं भक्तों के लिए, जिन्होंने स्वयं को पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है, उनके जीवन में सह-घटनाओं का कोई अस्तित्व ही नहीं है। उनके जीवन का हर एक क्षण बाबा द्वारा ही रचाया गया है, फिर सह-घटनाओं का तो सवाल ही नहीं उठता है। हम, विशेष रूप से साईं भक्त, उन्हें चमत्कार और बाबा का आशीर्वाद ही मानते हैं, जबकि अन्य जो बाबा से जुड़े नहीं हैं (जो बाबा की इच्छा पर निर्भर है) वही इसे सह-घटनाएँ कहते है। इसीप्रकार की यहाँ एक घटना प्रस्तुत है जिसे सह-घटना कहिये या चमत्कार किन्तु यह बाबा की दया को दर्शाता है।
नमस्कार हेतल,
मैं बहुत खुश हूँ यह देखकर की ऐसा भी कोई माध्यम है जहाँ हम अपने अनुभव को साझा कर सकते है और यह बता सकते है की किस प्रकार बाबा अपने बच्चो की चिंता करते है।
हालाँकि ऐसे कई सारे अनुभव हैं,पर यहाँ मैं एक छोटे से अनुभव से शुरुवात करती हूँ, जो यह दर्शाता है कि बाबा केवल आपको आपकी ज़रूरत के समय ही नहीं, बल्कि एक चिंतित और प्यारी माँ की तरह हमारी हर छोटी-बड़ी समस्या का भी ध्यान रखते हैं।
यह अक्टूबर २००७ की घटना है तब मेरे बेटे का भी जन्म हुआ था| काम के सिलसिले में मेरे पति अमेरिका चले गए, मेरे ससुराल वाले भी अमेरिका में ही थे क्यूंकि मेरी ननंद की डिलीवरी भी उसी समय हुयी थी| इसीसलिए मैं अपने माता पिता के घर पर ही रहती थी |
एक दिन मेरी बड़ी बेटी जो नर्सरी (प्री-प्राइमरी सेक्शन) में पढ़ती है, उसके स्कूल में कुछ प्रोग्राम था, जिसमें माता-पिता में से किसी एक को उपस्थित होना ज़रूरी था, लेकिन जैसा कि मेरे पति यहाँ नहीं थे और मेरी भी अभी-अभी डिलीवरी हुई थी इसीलिए मैं बहुत कमजोर महसूस कर रही थी, इसीलिए मैंने अपनी माँ को उसके साथ जाने के लिए कहा। लेकिन मेरी बेटी चाहती थी कि मैं उसके साथ जाऊं और वह ज़िद्द करने लगी के मैं ही उसके साथ चालू| मैं भी उसे दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने उसके साथ जाने का फैसला किया।हम प्रोग्राम में पहुंचे। जैसे ही प्रोग्राम समाप्त हुआ, मैं तुरंत ही ऑटो की तलाश में निकल पड़ी, क्योंकि उसका स्कूल मेरी माँ के घर से दूर था और जिस स्थान पर उसका स्कूल था, वहाँ से ऑटो मिलना भी मुश्किल था, आमतौर पर मैं ही उसे अपनी गाडी में स्कूल ले जाती थी| लेकिन मेरा ऑपरेशन होने के कारन मुझे ड्राइव करने की अनुमति नहीं थी।
जब हम ऑटो की तलाश कर रहे थे, तब सड़क पर कोई भी नहीं था| जैसा कि वह ओक्टबर का महीना था इसीलिए सूरज का ताप और गर्मी भी काफी थी। 15 मिनट के इंतजार के बाद मैंने अपनी बेटी से कहा कि हम पैदल चलना शुरू करते है, कुछ समय बाद ही मुझे कमजोरी और उलझन सी महसूस होने लगी, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करू और बाकी सभी लोग भी जा चुके थे|
उस सुनसान सड़क पर सिर्फ मैं और मेरी बेटी हम दोनो ही चलते जा रहे थे। कुछ मिनटों तक चलने के बाद मेरी बेटी ने मुझ से कहा की मैं उसे अपने गोद में उठाऊ लेकिन मैं यह नहीं कर सकती थी क्योंकि मेरी डिलीवरी को सिर्फ 15 दिन ही हुए थे।
इसीलिए, हमेशा की तरह, मैंने अपने बाबा से प्रार्थना करते हुए कहा की, “बाबा मुझ पर और मेरी बच्ची पर कुछ दया करो।” उस वक्त मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे।जैसे ही मैंने अपने आँसू पोंछे और मैंने देखा कि अचानक एक ऑटो सामने से आ रहा था वह बिलकुल नया ऑटो था और उसके सामने की शीशे में बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था “साईं बाबा की दया” और वह आकर हमारे सामने रुक गया जैसे कि किसी ने उसे हमारे लिए ही भेजा हो। मैं ऑटो में बैठते ही सोचने लगी की बाबा आप हमारी कितनी परवाह करते हैं।
इसीप्रकार के मेरे जीवन में कई प्रसंग हुए हैं, जिन्हें मैं आप सभी साईं भक्तों के साथ साझा करती रहूंगी।
ॐ श्री साईनाथाय नमः
दीपिका