Chant “Sai Sai” – The Simplest Sadhna Of Kaliyug से अनुवाद
साईं राम, भक्त पाठकों हमने पूरे विश्व में “साईं युग” फैलाने के लिए “महापारायण” का मिशन शुरू किया है, जिसमें 30 सितंबर, 2017 के दशहरा से बाबा की शताब्दी महासामधि समारोहों के उपलक्ष्य में लगभग 20,000 भक्तों ने भाग लिया है और अन्य कई सारे लोग हमारी संरचना (format) पर ही अपने-अपने स्तर पर महापारायण कर रहे हैं। भक्तो ने इस महापारायण के द्वारा बाबा के प्रति जो कृतज्ञता और आभार प्रकट किया है, इस छोटे से कदम को बाबा ने बहुत आशीर्वाद दिया है। यद्यपि प्रत्येक विचार और उसके निष्पादन की योजना उनके द्वारा ही बनाई गई थी, फिर भी वह एक दर्शक ही बने रहे, उन्होंने यह प्यारा सा खेल रचा और सबको दिखाया कि उनकी कृपा अनंत है। उन्होंने बड़ी कुशलता से हर एक क्षण को हमारे लिए व्यवस्थित तैयार किया और हमें उनकी सेवा करने की स्वीकृति और आज्ञा दी। तब से कई लोगों ने मानव बुद्धि से परे लीलाओं का अनुभव किया है और हम उनके भक्तों के रूप में यह अमृत पी कर धन्य हुए है । बाबा के कार्य करने के उनके अपने ही तरीके हैं और सभी घटनाये केसे होती हैं यह हमेशा सामान्य मनुष्यों के लिए एक रहस्य ही बना रहता है। हम बाबा से यह प्रश्न करते हैं कि हमारी भक्ति पक्की है तब भी वह हमारी प्रार्थना क्यूँ नही सुन रहे। कुछ चीज़ों को समझाया नही जा सकता लेकिन हम जानते हैं कि यह हमारे भगवान का काम हैं। वह बड़ी चतुराई से सभी चीज़े सुलझाते है कि हम इसका हिस्सा बनने के लिए धन्य महसूस करते हैं और इसलिए कभी भी हम उन्हें धन्यवाद करना नहीं भूलते।
क्या हमारे पास पर्याप्त शब्द है कि हम बाबा को – जब वह देहधारी थे – समाधि मंदिर के निर्माण की लीला के लिए धन्यवाद कर सकें? यदि समाधी मंदिर नहीं बना होता, तो आज हम उनकी पूजा करने के लिए कहां जाते? उनकी योजना हमेशा सटीक होती है जो लम्बे समय के लिए कई पीढ़ियों तक चलती रहती है। उन्होंने अपने दो अलग-अलग भक्तों को जो श्रीमान बुटी और शामा थे उन्हें स्वप्न दिया था। बुटी शिर्डी में अपने स्वयं का एक वाडा बनाने का विचार कर ही रहे थे की एक दिन जब वह दीक्षित वाडा में सो रहे थे तब बाबा ने उनके स्वप्न में प्रकट होकर उन्हें वाडा के साथ मंदिर बनाने का आदेश दिया। वह एक धनवान व्यक्ति थे और यह कार्य उनके लिए मुश्किल नहीं था, इस प्रकार बाबा की आज्ञा प्राप्त करके उनकी जो वडा बनाने की इच्छा थी उसकी भी पुष्टि मिल गयी। बाबा ने शामा को भी स्वप्न में आकर वही आदेश दिया। अब प्रश्न यह उठता है कि उन्होंने दो अलग-अलग व्यक्तियों को एक ही स्वप्न क्यूँ दिया। क्यूंकि शामा उनके सबसे क़रीब भक्त थे और उनके माध्यम से भगवान बाबा ने वाडा की अपनी इच्छा को उनके द्वारा निश्चित आदेश दिया।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बाबा स्वयं भगवान थे और कई पीड़ित आत्माओं को सांत्वना देने के लिए वे धरती पर प्रकट हुए। जब वे जीवीत थे उन्होंने कई मार्गों की नींव रखी जिस पर कल युग की आत्माएं जीवित रहते हुए प्रार्थना कर सकती थीं। उसके बाद भी वह अपने समाधि से लाखों श्रद्धालुओं की प्रार्थनाओं का उत्तर देने में सक्रिय है। जिस भक्ति की विधि का उन्होंने अपने भक्तों को सुझाव दिया था, वे बहुत ही सरल हैं। आज-कल के भाग-दौड़ भरि ज़िन्दगी में पूजा के कठिन नियमों का पालन करना मुश्किल है। उन्होंने “नाम जाप” (उनके नाम या किसी भी भगवान का नाम निरंतर जाप करने) की सरल किन्तु बहुत शक्तिशाली विधि रखी है, जो सांसारिक जिम्मेदारियों के साथ भी किया जा सकता है। भगवान साईं बाबा के भक्तों द्वारा यह हमेशा अनुभव किया गया है कि यदि किसी भक्त को उनकी सेवा करने की इच्छा होती है तो वे स्वयं ही हर चीज की व्यवस्था करते है। यद्यपि बाहरी रूप से ऐसा लगता है कि भक्त बाबा की सेवा कर रहे है, लेकिन जब भक्त से पूछा जाता है तो वह कहते है कि बाबा ने ही सब कुछ किया है, मैंने कुछ भी नहीं किया है।
वास्तव में यह सेवा स्वयं भक्त के ही भलाई के लिए होती है। अब श्री साईं सत्चरित्र स्वप्न की घटना की ओर लौटते हैं। जब भगवान बाबा देहधारी थे तब वह अपनी शक्ति से दो लोगों के सपने में प्रकट हुए, क्या आपको लगता है कि वह समाधिस्त होने के बाद भी ऐसा कर सकते है? जी हाँ बिलकुल कर सकते है। अब देखें कि उन्होंने यह कैसे किया। वह दो व्यक्तियों के सपने में नहीं प्रकट हुए, बल्कि उन्होंने वैश्विक स्तर (global level) पर नाम जाप शुरू करने के लिए ना ही केवल दो व्यक्तियों को बल्कि दो से अधिक व्यक्तियों को सीधे निर्देश दिया और वह भी जागृत अवस्था में। क्या यह हमारे बुरे कर्मो को शुद्ध करने के लिए इस प्यारे बाबा की एक अदभुत लीला नहीं है। श्री साईं सच्चरित्र के लगभग हर अध्याय में बाबा ने अपने ही तरीके से भगवान, हरि, साई आदि का नाम जप करने के लिए कहा है। लेकिन हम इस सबसे आसान साधना को भूल गए हैं और गलतफहमी के कारन हम यह सोचने लगे कि हमने उचित तरीके से उनकी पूजा नहीं की है और इसीलिए वो हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं दे रहे है।
हम आम तौर पर पूर्ण समर्पण नहीं करते और टालते रहते है और फिर बुरे परिणामों के लिए उन्हें ही दोषी ठहराते हैं। वास्तव में वह सभी के साक्षी है और उन्होंने हमेशा हमें कर्म के चक्र को समझाया है जिससे कोई भी बच नहीं सकता। जैसे सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन के “मेरे साई” इस शो का प्रसारण किया जा रहा है और उसी मे एक घटना थी जहाँ बाबा ने “मोनी” नाम की एक लड़की के सर पर एक पत्थर फेंका था ताकि उसे अपनी बोलने की शक्ति वापस मिल जाए। पत्थर जोर से उसके सिर पर लगने के कारन वह रात भर बेहोश रही मगर उसे उसकी बोलने की शक्ति वापस मिल गयी क्योंकि जो पत्थर उस पर फेंका गया था वह दरअसल बाबा का आशीर्वाद ही था। कुछ एपिसोड के बाद दिखाया गया की, जब बाबा बाईजामा के द्वारा दिया हुआ भोजन खा रहे थे, तब उनके विरोधियों ने उनको पत्थर फेंक कर मारा। बाईजा माँ ने तुरन्त ही अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर उनको पट्टी बंधी। जब झिपरी (जिसे वह लक्ष्मी कहते हैं) वह पूछती है कि उनके साथ क्या हुआ, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा की “कर्म का फल मिल”। तो जब बाबा स्वयं इस कर्म के फल से नहीं बच सकते हैं तो हम इससे कैसे बाहर निकलेंगे। किन्तु हमे पूर्ण विश्वास है कि यदि भगवान बाबा हमारे साथ हैं, तो हमारे बुरे कर्म का असर कम हो जाएगा और वह अपने भक्तों की सहायता करेंगे। आइये इस विश्वास पर विचार करके हम भगवान का नाम लेते है। जैसे की महापारायण की इस सोच को हमने प्रत्यक्ष रूप से शुरू किया है, नाम जाप के लिए भी उन्होंने उनके द्वारा चुने गए कई भक्तों को प्रेरित किया है। उन्होंने जो जो लीला रची वह बहुत ही अद्भुत है जिसे वे भक्त स्वयं ही अगले पोस्ट्स में वर्णित करेंगे। बाबा के अद्भुत लीलाओ को पढ़ने के लिए रोज़ यहाँ आइये।
हेतल पाटिल रावत
साईं की दीवानी
इस श्रृंखला में अगला पोस्ट: साईं भक्त राखी को नाम जाप के लिए पहला संकेत
SAI…SAI…