श्री नारायण मोतीराम जानी जी श्री साई बाबा के अनन्य भक्त थे। वह ऑडिच्या ब्राह्मण जात के थे और नासिक में रहते थे| जब बाबा देहधारी थे, तब नारायणराव जी को दो अवसरों पर उनका दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
जानी जी का भाग्य इतना अच्छा था कि उन्हें ना ही केवल श्री साई बाबा का सत्संग मिला, बल्कि श्री गड़गे बाबा, श्री वाली बाबा (इंदौर के श्री माधवनाथ महाराज के पट्टा शिष्य ) जैसे पवित्र लोगों के सत्संग का अवसर भी मिला। ये सभी लोग उनके घर में भी रह चुके थे। लेकिन जानी जी तो साई बाबा के एक पक्के भक्त बन गए थे।
जब जानी जी पहली बार बाबा के दर्शन के लिए आए, तब वह रामचंद्र वामन मोदक के यहााँ काम करते थे। उस समय बाबा ने अचानक से कहा कि “किसी के आदेश से बाध्य न हो, अपना खुद का व्यवसाय शुरू करो!” और भविष्य की घटनाओं से ये साबित हो गया, जानी जी ने अपने नौकरी छोड़ दी और नासिक में ‘आनन्दआश्रम ‘ के नाम का एक भोजनालय और होस्टल शुरू किया । उनकी कड़ी मेहनत और प्रयासों से वह एक प्रसिद्ध आश्रम बन गया । इन सभी घटनाओं की वजह के कारण बाबा में उनका विश्वास बढ़ गया और वह बाबा के द्रुड़ भक्त बन गए।
बाबा के आशीर्वाद से ‘आनन्दआश्रम ‘ अच्छा चलने लगा | जानी जी के घर में बहुत से नौकर थे और यहां तक की उनके पास एक घोड़ा गाड़ी भी थी। जो भी नासिक की यात्रा करने आते उन लोगो को भी वह अपने भोजनालय और छात्रावास के माध्यम से भोजन और शरण की सेवा प्रदान करते थे।
नारायणराव जी की समय से पहले ही मरत्यु हो गयी । उस समय, उनके बच्चे छोटे थे और भोजनालय नहीं चला सकते थे। वे आनन्दाश्रम की देखभाल भी नहीं कर सकते थे इसीलिए परिवार के लोगो को मुश्किलों का सामना करना पड़ा । नासिक में जहां उन्होंने हजारों व्यक्तियों को भोजन और आश्रय दिया था, उसी शहर में उनके परिवार को कई दिनो तक बिना भोजन के रहना पड़ता था। जैसे ही उनकी गरीबी आई, वैसे ही दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी उनसे मुँह फेर लिया|
नारायणराव जी की पत्नी ने नासिक छोड़ने और खंदवा के निकट धुनी दादा के स्थान पर जाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने सामान को इकट्ठा किया और नासिक छोड़ डदया। सिर्फ़ इतना ही नहीं रास्ते में भी , उनका कई सामान चोरी हो गया।
खंदवा पहुंचने पर, उस गरीब महिला ने संत धूनी दादा के दर्शन किए और अपनी उदास कहानी सुनाई। उन्होंने उस महिला के लिए मौलिक आवश्यक चीज़े जैसे कि भोजन और आश्रय की व्यवस्था की और वह महिला उस धर्मशाला में रहने लगी।उस महिला के चचेरे भाई चालीसगांव के एक मिल में काम करते थे । संयोग से वह धूनी दादा के दर्शन के लिए आए थे। अपने भाई को देखकर वह उसके सामने जाने से बचने की कोशिश करने लगी।
उनके भाई दर्शन के बाद धुनी दादा के सामने दक्षिणा रखने ही जा रहे थे कि दादा ने कहा, “मुझे दक्षिणा मत दो। उस कोने में, एक महिला अपने बच्चों के साथ बैठी है उनके लिए नासिक की टिकट खरीद कर दे दो! उन्हें नासिक वापस भेज दो क्यूँकि वह श्री साई बाबा के आशीर्वाद पाने वाले भाग्यशाली हैं।”
यह इस बात का प्रमाण है कि कठिन समय में भी बाबा का उनके साथ बाबा का आशीर्वाद था। नारायणराव जी की पत्नी अब शांति से रहने लगीं। उनकी आर्थिक स्तिथी तो नही बदली लेकिन उनकी मानसिक स्तिथी में काफी सुधार हुआ। अब, उस महिला ने जीवन की परेशिनियों का सामना करने के लिए साहस प्राप्त कर लिया था और उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उनके सदगुरु उसके साथ हैं।
कई दिन बीतने के बाद नारायणराव जी की पत्नी अपने परिवार के साथ नासिक से पूना चली गयी | वह पुणे में बाबू गेनू चौक की एक जगह में रहने लगीं । उन्हें कुछ काम मिल गया – कुछ स्थानों पर खाना पकाने का और कुछ स्थानों पर एक नर्स का – और इस प्रकार उन्होंने कु छ पैसे कमाने शूरू कर दिया।
सूत्र: साई लीला मैगज़ीन